आज हम आतंक के साए में जी रहे हैं
सच पूछो तो पल-पल
आतंक का विष ही पी रहे हैं
घरों में कलह का आतंक
गलियों में छलावे का आतंक
सड़कों पर इज़्ज़त तक लुट जाने का आतंक
नदियों में प्रदूषण का आतंक
सागर में सूनामी-नरगिस
और
जहाज़ों को बंधक बनाने का आतंक
धरती पर भूकंप का
वृक्षों की संख्या कम होने
और
प्लास्टिक के उपयोग से
होने वाली हानियों का आतंक
अंबर से बिजली गिरने से मरने वालों की
बढ़ती संख्या का आतंक
जो कभी सुना नहीं था
आज, रोज़-रोज़ बादल फटने से
मृत्युदर बढ़ने का आतंक
रक्षकों के भक्षक बनने का आतंक
अन्दर आतंक
बाहर आतंक
ऊपर आतंक
नीचे आतंक
सर्दी में ठिठुरने का आतंक
गर्मी में झुलसने का आतंक
वर्षा में बाढ़ का आतंक
वसंत की भनक तक न पड़ने का आतंक
अपनों में आतंक
गैरों में आतंक
दिलों में आतंक
यानी आतंक ही आतंक
सबसे पहले दिलों में आतंक का
मुकाबला करना है
अपने को ईमानदार और मज़बूत बनाकर
मानवता के संकट को हरना है
तभी
आतंकवाद का हो सकेगा सफाया
वरना
आंख बंद करके
देखनी पड़ेगी
आतंक की माया.
6 thoughts on “हम आतंक के साए में जी रहे हैं”
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कठोर सत्य, बहिन जी ! निरर्थक आतंकवाद के साये में शांतिपूर्वक जीना लगभग असम्भव हो गया है।
प्रिय विजय भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है.
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब सृजन
प्रिय राजकिशोर भाई जी, लाजवाब प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
लीला बहन , कविता बहुत अच्छी लगी और आतंक का सफाया करना भी समझ आया ,
सबसे पहले दिलों में आतंक का
मुकाबला करना है
अपने को ईमानदार और मज़बूत बनाकर
मानवता के संकट को हरना है
तभी
आतंकवाद का हो सकेगा सफाया.
प्रिय गुरमैल भाई जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.