सच मे क्या ऐसा होता है
किसी की याद आते ही
ये दिल रोता है
भर जाता है क्यो गला
जब लब पर नाम तुम्हारा आता है
सपनो मे छुप छुप कर
क्यो मिलने आते हो
हकिकत करने ही तुम
क्यो नही एक दिन आते हो
लाख भूलाना चाहती हूँ तुम्हे
लेकिन भूला नही पाती हूँ
आखिर ऐसा क्यो होता है
जिसे भूलाना चाहो
वही अक्सर याद आता है|
निवेदिता चतुर्वेदी
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