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ग़ज़ल
122 122 122 122 कटी रात कैसे रवानी न पूंछो. ग़मे इश्क की कुछ कहानी न पूछो. सितम को बताते रहे वो मुहब्बत. अज़ब रहनुमाई दिवानी न पूंछो . रहे घाव रिसते अभी दर्द गहरा, मुहब्बत में उसकी की निशानी न पूंछो. जफ़ाओं को उनकी निभाया वफ़ा से, सिला इश्क का बदग़ुमानी न पूंछो . […]
गज़ल
नज़ाकत आप क्या जानें, नफासत आप क्या जानें, किसी मासूम चेहरे की शरारत आप क्या जानें जज़्बे हैं ये इंसानी, फरिश्तों में नहीं मिलते, अदावत आप क्या जानें, रफाकत आप क्या जानें दुनिया को झुकाया है आपने ज़ोर-ए-बाज़ू से, दिलों पे कैसे होती है हुकूमत आप क्या जानें सारी ज़िंदगी बीती माल-ओ-मिलकत कमाने में, क्या […]
ग़ज़ल
इक तो अब हो गई पुरानी भी, हमको आती नहीं सुनानी भी तुम अपने गम से भी नहीं खाली, है अधूरी मेरी कहानी भी आशिकी मर्ज़ लाइलाज भी है, और पैगाम-ए-ज़िंदगानी भी थोड़ा तूने भरोसा तोड़ दिया, थोड़ी दिल को थी बदगुमानी भी कभी सैलाब तो कभी शोले, आँख में आग भी है पानी भी […]