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ग़ज़ल “तो कोई बात बने”
जिन्दगी साथ निभाओ, तो कोई बात बने राम सा खुद को बनाओ, तो कोई बात बने — एक दिन दीप जलाने से भला क्या होगा रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने — इन बनावट के उसूलों में, धरा ही क्या है प्यार की आग जगाओ, तो कोई बात बने — सिर्फ पुतलों के जलाने […]
किसी गुरू की नहीं और किसी न चेले की
किसी गुरू की नहीं और किसी न चेले की ग़ज़ल नहीं है बपौती किसी अकेले की चला रहे हैं वतन आज हुक्मरां ऐसे नहीं है जिनमें कोई अक्ल एक धेले की ये सोच को भी गिरा देगी एक दिन तेरी खरीदने से बचो चीज़ कोई ठेले की बताऊँ क्या है मुहब्बत तो सुन लो बस […]
ग़ज़ल
बस अपना ही ग़म देखा है तूने कितना कम देखा है ख़ुद को ही पहचान न पाया जब अपना अल्बम देखा है उसको भी गर रोते देखा पत्थर को शबनम देखा है उन शाखों पर फल भी होंगे जिनको तूने ख़म देखा है हर मौसम बेमौसम जैसे जाने क्या मौसम देखा है […]