उषा और निशा में प्रगाढ़ स्नेह था। पल भर के लिए भी दोनों एक दूसरे से अलग नहीं रहती थी। बिछड़ने का नाम सुनते ही उनके आंसू छलकने लगते थे। दुनिया वालों को उनकी यह प्रीति फूटी आंख नहीं सुहाती थी। उनको साथ देखकर लोग तरह तरह की बातें करते थे। उषा थी एकदम उजली, दूध जैसा धवल रंग। सौंदर्य मानों उसके अंग अंग से टपक पड़ता था। परन्तु निशा थी इसके एकदम विपरीत। काली कलूटी एवम् डरावनी सूरत थी उसकी। कोई उसे देखना तक पसंद नहीं करता था। वहीं उषा की एक झलक तक पाने के लिए लोग तरसते थे। फिर भी वे दोनों साथ ही रहती थी।
दुनिया वालों ने हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की,” हे सर्वशक्तिमान, इस बेमेल जोड़ी को अलग कीजिए। हम इन्हें एक साथ नहीं देखना चाहते हैं। निशा को जब यह मालूम हुआ तो वह बहुत दुखी हुई। वह अपनी सखी उषा के लिए दुखी थी। उषा के साथ वह ऐसे ही लगती थी जैसे कलंक का टीका। उसने सोचा काश मैं भी सुंदर होती। मुझे उषा से बिछुड़ना नहीं पड़ता। सदा उसके साथ ही रहती। परन्तु तभी उसके मन से आवाज़ आई।,” क्या हुआ तुम उजली नहीं हो तो। अपने काले रंग को स्वीकार करो। रंग से ऊपर उठकर अपनी श्रेष्ठता साबित कर दो।
निशा बेहद उदास थी और अकेली ही बैठी थी। आंखों से टप टप आंसू गिरकर उसका आंचल गीला कर रहे थे। उषा से बिना मिले ही वह भाग आई थी। तभी उसे पदचापों की आवाज़ सुनाई दी। उसने पीछे मुडकर देखा तो उषा उसकी ओर आ रही थी। वह वहां से भाग खड़ी हुई ताकि उषा उसे नहीं देख पाए। उषा भी उसके पीछे पीछे दौड़ रही थी। ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर बिखरे हुए कांटों से उसके पैर लहूलुहान हो गए। फिर भी वह दौड़ रही थी। निशा उससे थोड़ी ही दूर आगे थी। उसने दौड़कर निशा का आंचल पकड़ लिया। आंचल गीला था। उसमे से आंसुओं की बूंदें गिर रही थी। उसने आंचल कस कर पकड़ लिया लेकिन निशा तब तक गायब हो चुकी थी। रह गया था तो उसका आंचल और आंसुओं की कुछ बूंदें। उषा अकेली रह गई थी। उसने आंचल ओढ़ लिया और आंसुओं की बूंदों से अपना सुंदर चेहरा धो दिया। तभी सूरज निकल आया। उषा का रंग रूप और भी निखर गया। दिन भर उसका रंग रूप चमकता रहा। फिर निशा आई और उसकी कालिमा सर्वत्र बिखर गई। चांद भी उसका साथ निभाने को निकल आया। सभी नक्षत्रों सहित वह आकाश में चमकता रहा। लोग आश्चर्य चकित थे काली कलूटी निशा का यह रूप देखकर।
— अर्चना त्यागी