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सुनो सजना…
सुनो सजना… सुनो सजना ! सुरमई शाम ने फिर शरारत भरी,,, साजिश की है। सुनहरे सपने दिखा, सतरंगी एहसास जगा, सात सुरों की छेड़ के सरगम, संग दिल के,,, दिल्लगी की है। सुनो साजन ! सांसों ने फिर सांसों में सिमटने की तमन्ना की है । अंजु गुप्ता
मैं नशे में हूँ
उजाले मंद हुए , मैं मयखाने चला गया। जख्म उजागर ना हो,मैं पीता चला गया।। जैसे जीवन से कभी नफरत होती थी। बस मैं वैसे ही जीवन जीता चला गया।। चंद बूंदे मय की जो मुझ को छू गयी। मैं मयखाने को खुद जीता चला गया।। दिल जो अश्को से डूबा रहा बरसो से, उन […]
दिवाली और पटाखे
दिये की रौशनी में अंधेरों को भागते देखा अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा। दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए, वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा । दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा। क्या होली क्या दिवाली माँ […]
One thought on “तर्कवादी”
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हम 21वीं सदी में
जब तक
अध्ययनार्थी नहीं बनेंगे,
तबतक
एक तर्कवादी
बन ही नहीं सकते !
यथार्थ तथ्य है। अध्ययन ही है जो हमें असीमित विस्तार देता है तर्कवादी और आस्थावान बनने के।