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मेरा गाँव
कितने दशक गुज़र गए है, मुझे तो गिनती नही उनकी, लेकिन कोई गिन रहा है, उसके बिछड़ने की गिनती। बरसों बाद कदम आ गए, उस खण्डर रूपी हवेली में, जहां गूंजती थी कभी, किलकारी बच्चों की ।। उसमें कदम जब मेरे पड़े, हाथ अनायास ही उठे, उसकी हर दीवार को टटोलने, होंठ तो […]
मैं छिपकली हूँ
मैं छिपकली हूँ गृहस्थी की दीवार से चिपकी मैं छिपकली हूँ कभी रसोईघर में बर्तनों के बीच मेरी आहट सुनाई तुम्हें देगी कभी हिम्मत कर घर की कालीन पर मेरी परछाई पड़ेगी घर और परिवार से चिपकी गृहस्थी की दीवार से चिपकी मैं छिपकली हूँ घर भर के आइनों पर चढ़ी तो फिसलती नज़र आऊँगी […]
प्यारी माँ
तीरथ माँ बाप को कभी करा न सका कभी श्रवण कुमार कहला न सका। छाती सुखा ली उसने मुझे पिलाकर मैं बकरी का दूध भी दिला न सका। गीले बिस्तर पर करवटे ली रात भर मैं टूटी खाट भी उसे सुला न सका। भूखी रहकर मुझे खिलाये व्यंजन मैं उसे जी भरके भी अफरा न […]