दो मुक्तक
चले आए थे महफिल में तेरी
दीदार की हसरत लिए
आंखें तरसकर खुलना भूल गईं
ताकते रहे हम
बैठे हैं अब लब सिए.
सुना था इश्क में
लोग हो जाते हैं दीवाने
एक हम हैं कि
मिला न विसाल-ए-सनम
खुद से भी हुए बेगाने.
दो मुक्तक
चले आए थे महफिल में तेरी
दीदार की हसरत लिए
आंखें तरसकर खुलना भूल गईं
ताकते रहे हम
बैठे हैं अब लब सिए.
सुना था इश्क में
लोग हो जाते हैं दीवाने
एक हम हैं कि
मिला न विसाल-ए-सनम
खुद से भी हुए बेगाने.
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