लोग जब हमारे क़रीब होते हैं तो, वो हम को नज़र ही नहीआते हैं, लेकिन जब वो दूर चले जाते हैं, या यूं कहें कि हमसे बिछड़ जाते हैं तो,हमसर दिल को अंदाज़ हो जाता है कि , ये दूरियां कितनी तकलीफ़ दे होती हैं, और इन दूरियों में कितनी नज़दीकी है, वक़्त की लकीरें कब रोके से रुकी हैं, वक़्त चलता ही रहता है,
जब हम उसकी अहमियत समझ पाते हैं,वह लम्हा जो ग़नीमत था , हमारी पकड़ से बाहर हो जाताहै, बिछड़ने वाले याद तो बहुत आते हैं,मगर लौट कर आना उनके लिए भी। मुमकिन नहीं,चकोर की चन्द्रमा से मुहब्बत चाहे सच्ची है ,मगर चांद को हासिल कर लेना फ़क़त उसका ख़्वाब ही है, ऎसा क्यों? प्यार करने वालों का मुक़द्दर जब संग्रेज़ये हकीक़त से दो चार होता है तो फिर उसकी झोली खाली की खाली ही रह जाती ।सपनों का सच्चाई से सामना आसमान से ज़मीन पा लाकर खड़ा कर देता है, जिस तरह दूर नजर आते बर्फ पोश खूबसूरत पहाड़ बहते हुए दरिया हरे भरे दरख्तों का झूरमुट असमान में उड़ते हुए पक्षी, कितने ही हमारे मन को सुकून देते है , ये बड़े ही दिलकश और रानाइयाँ पैदा करते हैं, मैंने तुम्हें दिल की बेइंतेहा गहराईयों से चाहा है, तुमको आज तक भूल न पाना, इस पागल पन, को तुम क्या कहोगी, वक़त तो होगा नहीं तुम्हारे पास लेकिन उम्मीद करता हूँ। कि मेरे दिल की आवाज़ को तुम समझ कर सुनकर , तुम भी तन्हाई में बैठकर कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर हो जाओगी, क्या ये ही प्यार है,
— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह