कविता

पूंछ जरा तू माटी से, सिकंदर की पहचान तू कर

अब सांसे केवल चलती हैं, अब नाम कहाँ ये लेती हैं
जो जीत गया वो बीत गया, जो था ही नही वो मीत गया

जो क़ायल थे वो घायल हैं, जो चल न सके बेहोश हुए
मैं पहले ही बंजारा था, हम फिर से खानाबदोश हुए

हर दयार में बयार बहे, क्यों उडूँ किसी के झोकों से
हर शज़र मुझे पहचान रही,पूंछो कांटों की नोकों से

जिनपे ऋतुयें आतीं हैं, उनसे है व्यवहार नहीं
जो खिलते हैं मुर्झाते हैं, बस कांटे सदाबहार यहीं

ये दुनियां सारी मेरी है, हर दर मेरा ठिकाना है
इस ‘राज’ में केवल लू चलती, ये तो तेरा बहाना है

आज कमां को पाने से, इतना तू गुमान न कर
पूंछ जरा तू माटी से, सिकंदर की पहचान तू कर

राज कुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी

राज कुमार तिवारी
संवाददाता बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन 9984172782
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