सत्यनारायण को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जैविक हलधर जैविक किसान पुरस्कार के लिए चयनित किया गया था. पुरस्कार लेने जाते समय गाड़ी की रफ्तार की तरह उसके मन में अतीत की रील चल रही थी.
“तीन साल पहले से ही आजादी के अमृत महोत्सव मनाने की चर्चा शुरु हो गई थी. पर सच पूछें तो हम आजाद हुए ही कब थे.” उसकी सोच में उदासीनता परिलक्षित थी.
“सभी की तरह मैं भी बेरोजगारी की गिरफ्त में था. महंगाई, आतंक, मां-बहिनों की अस्मत की चिंता की दबोच भी हमको गुलामी की जंजीरों में बांध रही थी.” उसकी उदासीनता मय सोच और भी बढ़ रही थी.
तभी मेरे सामने कुछ प्रेरक समाचारों की सुर्खियां आईं-
“लेक्चरर ने 11 साल की मेहनत से बनाई सोलर कार, सुपरकार जैसी दिखती है”
“5वीं पास युवक ने बना दी गैस से चलने वाली बाइक, 1 KG में 100 KM सफर”
“धैर्य-कड़ी मेहनत-लगन से सराबोर ऐसी अनेक सुर्खियों ने मेरे मन को झिंझोड़कर मुझे सच्ची आजादी प्राप्त करने की राह पर मोड़ दिया.” उदासीनता के बादल छट गए थे.
“मैं किसान परिवार से था. जमीन भी हमारे पास थी. अब तक उच्च शिक्षित होने के कारण रोजगार की तलाश में दर-दर भटका और कृषि से मुख मोड़े रहा. कैसा कृषक-पुत्र था मैं!”
“अपनी उच्च शिक्षा के बलबूते पर मैंने कृषि में नवाचार किए. इसके लिए मैंने पशुपालन और बागवानी का मॉडल अपनाया. जानवरों के लिए चारा और जैविक खेती मेरे साधन बन गए. मैं खुद बेरोजगार था, अब बहुत-से लोगों को रोजगार देने वाला बन गया.”
“संतुलन के आधार वाली इस विधि को मैंने आवर्तनशील खेती का नाम दिया. मेरी सफलता से आकर्षित होकर इस विधि को सीखने के लिए मेरे यहां इजरायल, अमेरिका और अफ्रीकन देशों तक के किसान आ चुके हैं. सत्यनारायण कृषि-परामर्श केंद्र” भी मेरी आय का बहुत बड़ा साधन बन गया था.”
“मेरी इसी आवर्तनशील खेती को आज “हलधर जैविक कृषि पुरस्कार” से सम्मानित किया जा रहा है.
“साहब, आपका गंतव्य आ गया है.” गाड़ी-चालक की आवाज से सत्यनारायण की तंद्रा टूटी.
बेरोजगारी से सच्ची आजादी और आत्मनिर्भरता के तेजोमय एहसास से उसका मुखमंडल दीपित था.
One thought on “सच्ची आजादी”
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स्वयं आत्मनिर्भर होकर औरों को भी आत्मनिर्भर करके उसने बेरोजगारी को धत्ता बताया था. लोगों के लिए इससे ज्यादा प्रेरक मिसाल भला क्या हो सकती है?