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विचार-विस्तार…!!
तुम्हारे जो विचार है, अरूपित-निराकार है, इनको गढ़ लेने दो, विहारों में चढ़ लेने दो.. कुत्सित कुवाक्य है जो अटल, नकार रहा है जिनको पटल, उन्हें मिट लेने दो, लेखनी से पिट लेने दो.. रिवाजी चलन बिखरता है, आजकल खुरों में निखरता है, शब्द बाण हर लेने दो, निराहार कर लेने दो.. तुम्हारे जो विचार […]
पहले जैसी अब बात नहीं!!
अब पहले जैसी बरसात नही, अब झीन्गूर वाली रात नही , कच्चे मकान सब पक्के बने, अब भीगने वाली रात नही। अब गाँव शहर सा लगते है, सब थोड़ा स्वारथ मे जुड़ते है, अब वो भाई चारा की बात नही, अब सिहराने वाली रात नही।। अब घाघ के बादल नही दीखते , अब कवि वो […]
जननी
जन्मदायिनी जननी जीवन को दांव पर लगाती फिर भी मुस्काती, हमारी एक झलक जैसे पाती सारा दर्द भूल जाती। औलाद के लिए दीवार, सुरक्षा चक्र होती औलाद की खुशियों की खातिर सब कुछ हंसते हंसते सह जाती। जननी का शब्द चित्र हम खींच नहीं सकते लाख कोशिश करें पर एक अंश भी परिभाषित नहीं कर […]