बहुत बड़ा और सुंदर मंच सजा हुआ था । मंच के डेकोरेशन से ही पता चल रहा था कि मंच पर ही लाखों का व्यय किया गया है । काजू, बादाम, पिस्ता की प्लेटों के सामने क्षेत्रीय विधायक, सांसद, अध्यक्ष और सत्ताधारी पार्टी के तमाम फध्यक्ष मंच की शोभा बड़ा रहे थे । इसके साथ ही कुछ विशेष लोगों के लिए लजीज खाने की व्यवस्था भी की गई थी। जिनमें प्रमुख थे मंच पर विराजमान गणों के अतिकरीबी, परिवारीजन, विशेष पार्टी पदाधिकारी व रात-दिन एक करने वाले कार्यकर्ता, मीडियाकर्मी । वैसे मीडियाकर्मियों के लिए लिफाफे की व्यवस्था भी की गई थी, जिसका वजन ठीक-ठाक रखा गया था ।
मंचासीन महामानवों के सम्मान से कार्यक्रम प्रारंभ होना था, सो माल्यार्पण हुआ, महंगी- महंगी शाॅलों को उढ़ाया गया, बड़े-बड़े मोमेंटो भेंट किए गये और कार्यक्रम शुरू…।
सस्ते घटिया किस्म के बदबूदार, चूहों के कटे कम्बलों के लिए गरीब-गुरबे लाईन में लग गये । ‘मैं न रह जाऊं – मैं न रह जाऊं’… के चक्कर में भगदड़ मच गई और पुलिस ने व्यवस्था बनाए रखने के लिए लाठीचार्ज कर दिया। न जाने कितनों की हड्डियां टूटीं, सिर फूटे।
दूसरे दिन अखबारों में छपा, गरीब व जरूरतमंदों को वितरित किए हजारों-हजार कंबल… परन्तु हड्डियां टूटने व सिर फूटने की खबरों का कोई अता-पता नहीं था ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा