चांद, चाहे तुम्हें कोई
पांडुरोग से कहे पीड़ित
कोरोना के तनाव से ताड़ित
दाग के दंश से दंशित
तुम नहीं समझते अपमानित
किंचित भी नहीं होते क्रोधित
चंदनिया के मृदुल मधु-रस से
समरस रहकर करते हो आप्लावित
गीता पढ़ी या नहीं पढ़ी
रहते हो हर पल निर्लिप्त.
सूर्य से उजियारा लेकर करते नहीं संचित
सतत करते वितरित
अग जग को करते प्रकाशित
फलों-फूलों को करते मधु-रस से सिंचित
समस्त सृष्टि के लिए उपयोगी हो
चांद, तुम योगी हो.
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