ग़ज़ल
हम तेरी राह के फूल बन न सके
तेरी राहो के काँटों को चुन न सके
तेरे दिल में जगह अब मिले न मिले
घाव हमने दिए जो वो सिले न सके
तेरी आखों का आंसू बनेंगे न हम
तेरे होठो की मुस्कान भी बन न सके ।
तेरी यादों में रास्ते निहारा करें
इस सफर के जो राही भी बन न सके ।
दूर रहके भी जो साथ चलते रहें
उस नदी के किनारों से बन न सके ।
अनुपमा दीक्षित भारद्वाज