फगुवारों के दल सजे, नेह लुटाती फाग।
चौपालें खुश हो झूमतीं, नाचें कोयल काग।।
जन-जन का मन मोहते, होली के शुभ रंग।
बजे मँजीरा ढोल अब, शहनाई मुरचंग।।
जीवन रंगों से बना, रंग महकते खूब।
आंखों को है शोभती, मृदुल दूधिया दूब।।
मान रंग का हम रखें, रंग बने पहचान।
रंगों से हैं जब सजे, सुंदर लगे वितान।।
रंग खिले हैं देह पर, जैसे खिलती धूप।
मिटी दिवारें भेद की, निर्धन, धनी अनूप।
रंगों की बौछार से, बची न कोई देह।
भींगे तन-मन नेह से, बरसे अम्बर मेह।।
— प्रमोद दीक्षित मलय