गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपने चेहरे पे ताजगी रखिए ।
ग़म के साये में भी खुशी रखिए ।
जीत ही जाना प्रेम है ही नहीं,
राह-ए-उल्फत में हार भी रखिए ।
भेद छुपता है कब छुपाने से,
खुद को जो आप हैं वही रखिए ।
क्या ख़बर कौन कर रहा स्टिंग,
दिल को हर वक्त लाॅक ही  रखिए ।
शाम-ए-गम का घना है अॅधियारा,
दिल में चाहत की रौशनी रखिए ।
आप मंजिल के हैं करीब बहुत,
सोंच उम्मीद से भरी रखिए ।
शायराना मिज़ाज है दिलकश,
अपने लफ़्ज़ों में नाजुकी रखिए ।
— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश