गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उठती कहाँ हमारी नजर, अब किसी तरफ।
नयनों में कैद कोई, दिखता है हर तरफ ।
मेरे  कदम  इशारों  के पायमाल  हैं।
मिलते ही बढ़ चले हैं कदम ,मेरे उस तरफ।
मिलने की मधुर याद लिए , मन हुआ मगन।
बिछुड़न की उदासी  है ,होठों  पे ना  हरफ।
कहते  हैं  पूर्वजन्म  के  संबंध  हैं   सभी ।
मालूम   पड़े जब गली  , रिश्तों के हर बरफ।
रहता है कोई  साथ कहाँ  साये की तरह ।
अब अजमा रहे हैं  कोई, मेरा हर  जरफ ।
— शिवनन्दन सिंह 

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968