कविता

वीरान शहर

वीरान क्यूँ हो गई हँसता ये शहर
परेशान क्यूँ दीख रही जीवन डगर
क्या मानव की गलती का है असर
क्यूं बिगड़ रहा है  बस्ती की सफर

भटक गये हैं यहाँ पे पढ़े लिखे जवान
बन रहे हैं नशे में वो बेरहम     हैवान
क्यूँ बन रहे हैं ये मूरख सब     शैतान
कुछ तो समझो रे जगत के    इन्सान

कल तक गुँजता था संगीत      जहाँ
गुम हो गई सब गीत कायनात में कहाँ
भूल गया मानवता प्रेम की रीत    यहाँ
रूठ गया गॉव जवार में सब मीत  जहाँ

क्या था क्या हाे गया मानव तेरा  शहर
कैसी आधुनिकता की बहा दी है कहर
बिगड़ चुकी है इन्सानियत की    डगर
क्या लुप्त हो जायेगा हॅसता ये  शहर

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088