गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हम बढ़ेंगे और आगे ज़िंदगी से प्यार कर
हम करें सेवा सभी की खुद को ही तैयार कर

देख दिल तो मत दुखाना तू किसी का कभी
कर समर्पण तू सदा ही कष्ट मिटा उपकार कर

चाहतें जो दिल बसी हों देखना उस ही तरह
मात्र सपने देख मत तू हर सपन साकार कर

ठोकरें मत मार तू अब ज़िंदगी को देख ले
बन निठल्ला तू न इसको सुन कभी दुश्वार कर

खुश सब रहते रहें अब जीतना तेरी खुशी
जीतकर भी तू अकेला रब बना वह हार कर

राह इंसानियत की चुन बात सबको ही बता
आदमी हो आदमी की अहमियत से प्यार कर

आज ख़ुशबू प्यार की ही देख तू फैला अभी
एकता की बात करना तू न अब तकरार कर

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’