मुक्तक/दोहा

मुक्तक

हमने लिखी एक कविता, दिल के भाव उकेरे थे,
कुछ चित्रों के बिम्ब बनाये, शब्दों में चित्र उकेरे थे।
भावों की गंगा में बहकर, नैनों से नीर बहाया था,
नैनों के भावों को पढ़ कर, नीर से चित्र उकेरे थे।
कुछ बातें मेरे मन की, उसके मन को भाती थी,
कुछ उसकी बातें, मेरे दिल में आस जगाती थी।
कभी रात भर जग कर, याद किया एक दूजे को,
कभी विरह की बात सोच, वेदना हमें रूलाती थी।
नये दौर में चिट्ठी लिखना, गये दौर की बात हुई,
विज्ञापन से इश्क़ जताना, आधुनिकता की बात हुई।
हमने भी इज़हार इश्क़ का, विज्ञापन से करवाया,
संपादक की पैनी कैंची, फूलों की बगिया खार हुई।
— डॉ. अनन्त कीर्ति वर्द्धन