कविता

प्रेम

आज फिर आंखें भर आई
जब प्रियवर की याद सताई
जैसे उमड़े हुए बदलो के बीच
छिपे हुए चांद समाए
धूप की ना छांव की
बस तेरे आने की आस थी
ना भूख थीं ना प्यास थी
बस एक झलक की बात थी
बिछाएं हुए इन पलकों पे
बस तेरी मीठी मुस्कान थी
जबसे गए तुम दूर प्रिय
तबसे न सोई दिन रैन प्रिय
नैनो से नीर बहाती थी
राहों में पलके बिछाई थी
तुमसे मिलने की चाहत में
एक प्रेम दीप जलाई थी।
बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।