कहानी – धैर्य और संयम
रोज कमाना, रोज खाना, कुछ इस तरह चल रही थी जिंदगी ! सूरज की लालिमा के साथ उठना, भोजन पानी बनाना और फिर दोनों का एकसाथ निकल जाना, अपनी रोटी के बंदोबस्त करने… आते-आते एक और दिन खत्म हो कर रात का ऐलान हो जाता है और फिर जुगनू के चमक में कब हाथ- पैर सीधे हो जाते हैं पता भी नहीं चलता। सोए हाथों से बच्ची पर हाथ फेरते हुए रहने का एहसास दिलाते फिर सूरज की लालिमा के साथ प्रातः उठ कर वही दिनचर्या!!
सबके बीच पिस रही थी बेटी ,नीलू ! अपनी अकेलेपन की दुनिया में कुछ इस तरह उलझ कर रह जाती कि मानो कच्ची उम्र में ही वक्त के थपेड़ों से टूटकर बिखर चुकी हो । चमकती हुई बड़े ग्लोब की सुइयां धीरे-धीरे अपना सफर तय कर रही हों। कुछ क्षण के लिए अंदर ,बाहर , कभी खिड़की पर भौरों का गुनगुनाना तो कभी दरवाजे पर सनसनाती हवाओं के साथ ,तो कभी रंग -बिरंगी मछलियों की आंख मिचौली देखते, ऐसे ही कुछ बीतता था नीलू का पूरा दिन। विद्यालय के बाद नीलू के तीन घंटे मानो तीन पहर की तरह बीतते। एक दिन नीलू पानी पुरी के लिए चौराहे पर पहुंची। वहां मधुमक्खी जैसे भनभनाते लोगों के बीच घंटो खड़ी रही। वक्त का कुछ पता भी ना चला ।कब सूरज ढलने का वक्त हो गया । अब नीलू टकटकी लगाए रहती कि कब नरेश ठेला लेकर आए और वह वहां पहुंचे! नरेश के आते ही नीलू दौड़ जाती मानो सौ दो सौ की खरीदने वाली बंधी खरीददार हो। वह फौरन आकर 2 रुपये का पानी पुरी खा लेती लेकिन घंटों लालसा से वहीं खड़ी रह जाती । जिससे नरेश उससे प्याज काटने, आलू मैश करने, जैसे छोटे काम करवा लेता और उसके बदले में वह तीन-चार पानी -पुरी उसे थमा देता। जिससे वह खुश हो जाती और मां के आने से पहले वह घर वापस भी आ जाती।
यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा । नरेश के अंदर नीलू के प्रति सहानुभूति की चादर भी चढ़ने लगी। अपने विद्यालय से आकर ही फौरन अच्छे कपड़े, होठों पर लालिमा , माथे पर बिंदी लगाकर मानो नरेश के ठेले का पहले से ही इंतजार करती । जिससे नीलू धीरे-धीरे लोगों की नजरों में आने लगी। कुछ ग्राहक भी उसे व्यंग्य कर कह देते– “इसे काम पर रख लिया है क्या !”
यह सुन नीलू को बड़ा बुरा लगता लेकिन दिल मिनरो के ऊपर चढ़ चुका था जिससे इन बातों का उस पर कोई असर न पड़ता। देखते ही देखते यह बात पूरे मोहल्ले में फैल गई।
माता-पिता तक यह खबर पहुंचते ही उन्होंने यकीन करने तक से इनकार कर दिया -“अभी उसकी उम्र ही क्या है! ” इतने में मोहल्ले के एक चाचा ने कह भी दिया कि इन चीजों की कोई उम्र नहीं होती ,और आप लोग तो पूरा दिन काम पर रहते हैं ।घर पर बच्चे क्या कर रहे हैं आपको क्या पता !!
इतना सुनते ही पिता के चेहरे पर चिंता की रेखाएं दौड़ गईं। उन्होंने घर आते ही तीखे स्वर में पत्नी सुचित्रा से कहा -“एक बेटी है, उसका भी ध्यान नहीं रख पा रही हो !”
अवाक हुए शब्दों में सुमित्रा ने कहा– “क्यों क्या हुआ ! “
“जाओ ,मोहल्ले वालों से पूछो ,क्या गुल खिला रही है हमारी नीलू!” पिता ने सब कुछ बताया।
“आप औरों की बातें सुन अपनी बेटी पर कैसे उंगली उठा सकते हैं ! और आप जो मुझे दोषी ठहरा रहे हैं आप ही बताओ , सिर्फ आपकी कमाई से इतनी महंगाई में क्या सारी जरूरतें पूरी हो जाएगी ?” कुछ पल थम कर सुमित्रा बोली – “क्यों ना हम एक अच्छा लड़का देखकर फौरन नीलू का विवाह करा दें। “
“सुमित्रा यह इतना आसान नहीं। वह अभी मात्र चौदह साल की हुई है ।”
“बात तो सही है आपकी, लेकिन किसी और की बातें सुन हम अपनी बेटी का भविष्य गर्त में नहीं डाल सकते ।इसका समाधान तो हमें ही निकलना होगा, लेकिन हमें इन बातों की नीलू को भनक नहीं लगनी चाहिए, वरन् उस पर बुरा असर पड़ेगा।”
दोनों मौन हो गए। इतने में मासूम सुमित्रा ने कहा -“क्यों ना हम पड़ोस के जमीरा शहर के बालिका विद्यालय में नीलू के दाखिले का प्रयास करें। वहां छात्रावास की सुविधा भी है और सबसे बड़ी बात वहां बिना माता-पिता की अनुमति के बाहर निकालने की सुविधा नहीं ।”
दोनों घर में काम के लिए कह बालिका विद्यालय पहुंचे । अच्छी छात्रा होने के कारण नीलू का दाखिला बड़ी आसानी से हो गया। पहले तो नीलू ने वहां जाने से इनकार किया लेकिन सुमित्रा के समझाने पर अच्छे भविष्य का वास्ता देकर उन्होंने उसे छात्रावास भेज दिया।
सुमित्रा को दुख तो हुआ क्योंकि अब स्ट्रीट लाइट जलने के बाद जुगनू के अंधेरे में घर जाकर भोजन पानी तैयार कर फिर अगले दिन की शुरुआत बड़ी ही दुखदाई हो जाती …लेकिन फिर भी एक आशा थी कि अब नीलू कम -से – कम पढ़कर किसी की मोहताज तो नहीं रहेगी।
नीलू के भी हफ्ते फिर महीने बीतते गए। पूरा छात्रावास उसकी तारीफों के पुल बांधता। तभी नरेश प्रधानाध्यापक की इजाजत लेकर पानी पुरी का ठेला लेकर बालिका विद्यालय के फाटक पर पहुंचा ।पानी -पुरी का ठेला देख विद्यार्थियों के साथ अध्यापकों का भी मेला सा उमड़ गया। सबके चेहरे पर हर्ष की लहर दौड़ गई। लेकिन नीलू ऊंचे चबूतरे पर खड़े होकर नरेश को बिना पलक झपकाए निहारती रही। ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह पल वहीं थम सा गया हो। कुछ समय बाद नरेश की नजर अकेली दूर खड़ी नीलू पर पड़ते ही दोनों के चेहरे ऐसे छलके जैसे सूरज और चांद का मिलन हो गया हो।
पुरानी यादों को ताजा करने वही दो रूपए का नोट लेकर ठेला पहुंची । अन्य विद्यार्थियों ने उसे दो रुपए के सिक्के देख व्यंग्य करते हुए कहा–” अरे नीलू दो ही रुपए के गोलगप्पे खायेगी क्या ! “
“हां यार, ” उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई।
विद्यालय के नियमानुसार लंच खत्म होते ही सभी विद्यार्थी कक्षाओं में जाने लगे। नीलू खुद तो अवश्य गई लेकिन मन- मस्तिष्क से वह पानी -पुरी के ठेले पर ही सिमट कर रह गई ।
नरेश हर दिन विद्यालय के फाटक पर घड़ी का कांटा बारह पर आते ही पहुंच जाता । साठ मिनट तक नीलू की नजरे भी फाटक पर ही रह जाती। इतना ही नहीं उसके जाने के बाद वह वक्त बेवक्त घंटो यादों में खोई रहती। धीरे-धीरे वह पढ़ाई से भी दूर होती गई। लेकिन ग्यारहवीं में मात्र 33% नंबर ने माता-पिता की इच्छाओं को हिला कर रख दिया। वे मजदूर जरूर थे लेकिन नीलू के लिए उनकी आशाएं बहुत ऊंची थी । हर मां-बाप की तरह वह भी उसके
जीवन को खुशियों से भर देना चाहते थे। मगर हां ,वे नीलू की कमियां देखने की बजाय विद्यालय कमेटी को दोषी ठहराते हुए घर को लौट गए।
नीलू वहीं रही ।अब वह पढ़ाई में मन लगाने का प्रयास भी करती तो इच्छाएं कहतीं कब घड़ी की सुई बारह पर आए। जिससे उसकी पढ़ाई में भी उतार-चढ़ाव का मिला- जुला रूप चलता रहा । दोनों के प्यार की चादर की ऊंचाइयां मिनरो तक पहुंचते ही जा रही थी । माता-पिता भी अपने जीवन में मग्न थे।
विद्यालय के बारहवीं की परीक्षाएं खत्म होने के अंतिम दिन ही नीलू विद्यालय से घर जाने की अनुमति मांग नरेश के साथ अपनी ही दुनिया में निकल पड़ी और दोनों इच्छा अनुसार सूरज की आभा समान लालिमा नीलू के माथे पर चमका दिये । दोनों ने कामवासना की इच्छाएं भी कुछ हद तक मंदिर के पिछवाड़े खाली पड़ी कुटिया में ही पूरी कर ली ।
नरेश इकलौता था ।माता-पिता नीलू की विलम्बता देख फौरन छात्रावास पहुंचे। इतने में प्रधानाध्यापक जी ने आवेदन पत्र दिखाते हुए कहा, वह तो कल ही घर के लिए जा चुकी है । यह सुनते ही माता-पिता के पैरों तले जमीन खिसक गई । क्रोधित स्वर में उन्होंने कुछ भला- बुरा भी कह दिया। प्रधानाचार्य ने आवेदन पत्र सामने करते हुए कहा -“आपके हस्ताक्षर भी हैं। “
अन्य विद्यार्थियों को बुलाकर उन्होंने उसकी जानकारी भी लेनी चाहिए। इतने में एक अन्य अध्यापिका ने जानने की इच्छा प्रकट की कि यहां आने से पहले उसका कुछ ऐसा था ,क्या! किसी से जान- पहचान……किसी से दोस्ती ! सुमित्रा सोच में पड़ गयी।दोनों एक दूसरे की ओर नजर दौड़ाने लगे। अध्यापिका कहने लगी नीलू जब से आई है अक्सर ही कुछ खोई -खोई सी रहती है।
मां ने कठोर स्वर में कहा -“हमें कुछ नहीं पता हमें हमारी बेटी चाहिए ।”
“देखिए मैडम हम मदद तो जरूर करेंगे लेकिन आप हमें ब्लेम नहीं कर सकती। आप जैसे कुछ गार्जियन के कारण ही बच्चे बिगड़ते हैं और फिर छात्रावास की बदनामी होती है । पिछले साल के नंबर भी कुछ ग़लत इंगित कर रहे थे लेकिन आपने विद्यालय पर दोषारोपण कर नीलू को और भी बढ़ावा दिया।” दोनों गुस्से से लाल -पीले होकर वहां से निकल गये।
अब तक पूरे मोहल्ले में नरेश की खबर धू -धू कर उड़ चुकी थी । नरेश के घर बड़ा-सा ताला देख पुनः पिता हताश हो गए। इतने में रामेश्वर मंदिर में नीलू के देखे जाने की बात सुनते ही दोनों ऑटो लेकर वहां पहुंचे। वहां कुटिया में दोनों को साथ देख उनकी जवान लड़खड़ा सी गई। मां की आंखें नम हो गई । दृश्य से ओझल होते हुए दोनों मंदिर के दरवाजे पर आ खड़े हो गए ।
इतने में नीलू दौड़ी आई गिड़गिड़ाते हुए बोली,”मुझे माफ कर दो मां ,पापा मुझे माफ कर दीजिए। मां प्लीज ….”
इतने में पिता ने कहा–” किस बात की माफी बेटा!”
” पापा आप भी जानते हो, मैं भी जानती हूं कि मैंने जो किया गलत था। लेकिन मैं क्या करती मैं इस बोझ को लेकर पढ़ भी नहीं पाती थी, इसलिए हमने बस….”
कठोर स्वर में कहा पिता ने सिर्फ इतना कहा-“हमारी नाक कटा दी!”
“पापा ऐसा नहीं है हमने तो ….”
इतने में मां ने कहा -“हमने तो तुम्हें पढ़ने के लिए यहां भेजा था , आज से दो साल पहले तुम्हारे भविष्य को बनाने के लिए हमने इतना बड़ा कदम उठाया था कि तुम बड़े होकर आत्मनिर्भर बनोगी। लेकिन फिर भी तुमने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ही ली …’
“पापा ऐसा नहीं है मैं आगे की पढ़ाई किसी हाल में भी जरूर पूरा करूंगी ।मैं आप लोगों के सपने को जरूर साकार करूंगी।”
” मत बोलो नीलू अब यह सब बातें अच्छी नहीं लगती।”
“कभी सोचा था हमारा बेटा नहीं है ,तुम ही हमारे बेटे का शौक भी पूरा करोगी लेकिन तुमने तो ….”
“पापा मैंने आप लोगों का कष्ट देखा है, मुझे आज भी मम्मी का वह स्पर्श याद है। अब आपके दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी …नरेश का भी इस दुनिया में कोई नहीं ।
नरेश पिता के चरणों पर माफी मांगते हुए कहने लगा -“मैंने बचपन में खोए हुऐ माता-पिता दोबारा पा लिए। इस गलती के लिए हमें क्षमा कर दीजिए ।
भावुकता की चादर लिए दोनों के दोनों गुमसुम से वही मौन रह गए । अपने दिल पर पत्थर रख समाज की परवाह न करते हुए दोनों उन्हें लेकर वापस घर आ गए। बच्ची की खुशी देख माता-पिता भी कुछ हद तक अपने मन को मना लिए।
देखते-देखते वक्त बीतता गया। नरेश भी अब पानी- पुरी का ठेला छोड़ गुमटी बनाकर स्थाई रूप से काम पर लग गया। अब वह पानी पुरी के साथ दूसरे स्नेक्स भी बनाने लगा । जिसमें मां भी उसका हाथ बंटाने लगी। दिन- प्रतिदिन नरेश की आमदनी भी बढ़ती गई ।वहीं नीलू ने पिता से कह अपनी आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला भी करा लिया ।अब वह छोटे बच्चों के ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्चा निकाल लेती । पढ़ाई पूरी होते ही उसे उसी विद्यालय में पढ़ाने का अवसर भी मिल गया। पिता का सिर गर्व से पुनः एक बार उठ गया। पूरा परिवार खुश रहने लगा। अब पिता भी अपनी मजदूरी छोड़ नरेश के दुकान पर ही रहने लगे।
एक दिन नीलू को विद्यालय की ओर जाते देख मां निहारते हुए कहने लगी “सचमुच कितने उतार-चढ़ावों के बाद आज हमारा यह सपना पूरा हुआ”।
” हां सचमुच , जीवन को यहां तक लाने के लिए हमने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन हां, यह सच है कि हमारे संयम की वजह से ही सब कुछ सुरक्षित हमें आज पुनः वापस मिल गया। वह धैर्य ही हमारा प्रमुख औजार बना।
“हां सच”! दोनों चेहरे पर खुशी की आभा लिए टकटकी लगाए नीलू को दूर तक निहारते ही रह गये….
— डोली शाह