सामाजिक

अपने विचारों को बदलना सीखें

विचार व्यक्ति के आन्तरिक व्यक्तित्व का सूचक है। विचार तो सिर्फ हवा के झौंके का कार्य करता है। यदि कहीं फूल मिले तो सुगन्ध लायेगा और कहीं गन्दगी मिली तो वह दुर्गंध ही लायेगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति के अगर भाव अच्छे है तो विचार भी उसेे अच्छे ही आयेंगे और यदि उसके भाव बुरे हैं तो विचार भी बुरे ही आयेंगे। विचार तो केवल एक संदेशवाहक का कार्य करता है। यदि हमें अपने आन्तरिक व्यक्तित्व को पहचानना है तो उसका बहुत अच्छा माध्यम है कि अपने मन में उठे विचारों को जानना। जैसे भी विचार भीतर से प्रकट होते हैं तो यह समझना चाहिए कि हमारा व्यक्तित्व भी वैसा ही है। आन्तरिक व्यक्तित्व को देखने एवं पहचानने का यदि कोई साधन है तो वह है हमारे भीतर में उठते विचार। कोई और साधन है ही नहीं इसके अलावा कि हम अपने आन्तरिक व्यक्तित्व को पहचान सके।
जैसे कि एक व्यक्ति सुबह के समय एकान्त में अकेला बैठा था। उसके मन में बहुत अच्छे-अच्छे विचार चल रहे थे। वह मन-ही-मन प्रसन्न भी हो रहा था कि आज कितना अच्छा दिन है जो इतने अच्छे विचार आ रहे हैं। शाम होते होते ही उसी व्यक्ति के अनिष्ट (बुरे) विचार आने शुरु हो गये तब उसका मन बड़ा दुःखी होता है। वह सोचता है कि न जाने आज ऐसा क्या हो रहा है जो इतने खराब विचार आ रहे हैं। विचार तो विचार होते है, वे न तो अच्छे होते है न बुरे। वे तो सिर्फ बाहरी प्रभावों का सूचक है। भीतर में अगर अच्छाई चल रही है तो अच्छाई की सूचना देगें और यदि बुराई चल रही है तो वे बुराई की सूचना देगें। मनुष्य के जीवन पर बाहरी विचारों के माध्यम से ही प्रभाव पड़ता रहता है। भीतर में चल रहे अच्छे-बुरे विचारों से ही मानव स्वयं को सुखी अथवा दुःखी कर लेता है। इन विचारों से ही बिना किसी प्रयोजन के मनुष्य अक्सर निराशा से भर जाता है। कारण जाने बिना भी प्रायः वह उत्तेजित हो जाता है। मन में उठते हुए विचारों से भी कभी-कभी उसमें हीन भावना अथवा अहंकार की भावना भी उत्पन्न हो जाती है।
मनुष्य के मन में प्रायः ग्रहों के प्रभाव के कारण, वातावरण के प्रभाव के कारण, अन्य व्यक्तियों के प्रभाव के कारण अथवा वस्तुओं के प्रभाव के कारण अक्सर अच्छे/बुरे विचार उठते ही रहते हैं। इन विचारों के द्वारा ही उसका अपने अन्तरमन से अक्सर युद्ध चलता ही रहता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि हम अपने अन्र्तमन में उठे विचारों को बदलें कैसे? इसके जवाब में ज्ञानीजन यह कहते हैं कि भीतर में उठते विचारों को बदलने में एक क्रिया है जो हमारी सहायता कर सकती हैं और वह है- ध्यान-साधना। ध्यान का मुख्य कार्य यही होता है कि मन में उठे विचारों को बदलना अथवा रोकना। ध्यान केवल आँख मूँद कर बैठने और समय व्यतीत करने का उपक्रम नहीं है।
एक बात और है कि विचारों को बदलने से पहले अपने भावों को बदलना जरूरी हैं। ध्यान साधकों ने इसके लिए जो रास्ता बताया है वह सत्य की खोज। हमारे आसपास में ऐसी कई बातें, ऐसी कई घटनाएँ अक्सर होती रहती है, जिससे हमारा मन व्यतीत हो जाता है। और तो और बिना कारण जानें हम तुरन्त ही उस पर अपनी प्रतिक्रिया तक दे देते हैं। हम सच्चाई तक पहुँचने का प्रयास ही नहीं करते। संत भगवन्त प्रायः अपने प्रवचनों के माध्यम से कहते हैं कि सत्य की खोज किए बिना भावों को नहीं बदला जा सकता और भावों को बदले बिना विचारों को नहीं बदला जा सकता। इसके लिए सत्य की खोज बहुत आवश्यक है। हमें केवल व्यर्थ की बातों में न अटक जाना है। क्योंकि जो व्यक्ति बातों की सच्चाई अथवा उसकी गहराई में नहीं जाता तब तक उसे सत्य की अनुभूति नहीं होती। मिथ्या जगत् में जीने वाला अपने जीवन को कभी नहीं बदल पाता। जो भीतर तक जाता है, उसकी सोच, चिंतन, धारणाएँ, यहाँ तक कि उसका पूरा जीवन सबकुछ बदल जाता है।

— राजीव नेपालिया (माथुर)

राजीव नेपालिया

401, ‘बंशी निकुंज’, महावीरपुरम् सिटी, चौपासनी जागीर, चौपासनी फनवर्ल्ड के पीछे, जोधपुर-342008 (राज.), मोबाइल: 98280-18003