कहीं भारतीय किशोरों और युवाओं का चारित्रिक पतन ही तो अभीष्ट नहीं है
मैंने “कंजूस मक्खीचूस” फिल्म देखी, वृद्ध और युवा स्त्री पात्रों तथा अन्यों द्वारा छोटे बच्चों की उपस्थिति में अभद्र वार्तालाप और गन्दी-गन्दी गालियाँ एक बार नहीं अनेकानेक बार दी गई है I इस फिल्म में बड़ी ही चालाकी के साथ पिता और बेटे का नाम गंगाप्रसाद और जमुनाप्रसाद पाण्डे और माता का नाम सरस्वती पाण्डे रखा गया है I धर्मनिष्ठ माता-पिता को चारधाम करवाने का बेटे का बड़ा स्वप्न था, अर्थात् परिवार पक्का सनातनी है I सेंसर बोर्ड भारतीय संस्कारी बच्चों-युवाओं के संस्कारों को धता बताते हुए उनके मन-मस्तिष्क और मुंह में अभद्रता और गालियों को भी ठूंसने का काम बड़े ही शातिराना तरीके करने में सफल हो गया है I इसी तरह “मामला लीगल है”, वेब सीरिज है, इसमें एक प्रौढ़ महिला अभिभाषक बहुत ही सहजता और निर्लज्जता के साथ सम्भोग, स्त्री-पुरुष के शारीरिक सम्बन्धों का उल्लेख करती रहती है, मानो यही सिखाने के लिए उस पात्र को सम्मिलित किया गया है I क्या यह हमारे अभिभाषकों तथा न्यायालयों का वास्तविक चित्रण है? पुरुषों की चड्डी के विज्ञापन में चड्डी देखकर एक महिला भावविभोर हो जाती है, मानो यही उसके जीवन का सबसे अहम् लक्ष्य था और चड्डी को देखकर सेक्सी अंदाज में आँख मारती है I इन सबके निहितार्थों को समझना होगा I धार्मिक, न्यायिक, राजनीतिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संगठनों की अनदेखी भारत के लिए बहुत भारी पड़ सकती है I
भारतीय दर्शन कभी भी अधोमुखी यानी शिश्न और योनि केन्द्रित नहीं रहा है, बल्कि उर्ध्वगामी रहा है I ऐसी ही विशेषताओं के कारण हमारे देश के युवा शिक्षा में सर्वोच्चता अर्जित करते हुए विकसित देशों के कई विभागों में लगभग 40% तक पदों पर विराजित हैं I जबकि सर्वसुविधा सम्पन्न विकसित देशों में इसी अधोमुखी दर्शन के कारण अपराध, नशा, गर्भपात, कुंवारी किशोरियों का माता बनना अत्यधिक सामान्य बात हो गई है I वहां तनावों में जीने वाले लोगों की संख्या लगभग 55-60% है और अवसाद आदि से पीड़ित युवाओं का प्रतिशत भी अधिक है I ओबामा ने इस कारण से एकाधिक बार अपने देश के युवाओं को आव्हान करते हुए कहा था कि “यदि भारत अमेरिका की तुलना में अधिक वैज्ञानिक और इंजीनियर पैदा करता रहा तो अमेरिका आगे नहीं रह पाएगा I” इसके पहले भी ओबामा ने कहा था कि “अमेरिका के युवा गणित और विज्ञान में पिछड़ते जा रहे हैं और औसत श्रेणी में पहुँच चुके हैं, जबकि भारत और चीन के युवा बहुत प्रतिभाशाली हैं I”
साम्राज्यवाद अपनी अश्लीलता से उपजी समस्याओं का वैश्विक व्यापीकरण करना चाहता है I ऐसी फिल्मों और वेब सीरिजों की आड़ में गन्दी गालियों और सेक्स सम्बन्धों को जबरिया घुसेड़ कर परोक्ष रूप से भारतीयों के मूल संस्कारों को नष्ट कर शिश्न और योनि केन्द्रित करने का षड्यंत्र निर्बाध चल रहा है, ताकि भारतीय युवा भी औसत श्रेणी के हो जाएं I दुःख है कि जिम्मेदार अनभिज्ञ हैं I
विख्यात फ्रांसीसी समाजशास्त्री पियरे बोर्दियो [Pierre Bourdieu] ने अपने आलेख “साम्राज्यवादी तर्क की धूर्तता पर” में लिखा था कि “पिछले दो-तीन सौ वर्षों से साम्राज्यवादी देश अपनी ऐतिहासिक स्थितियों से उत्पन्न समस्याओं को विश्व समस्याओं के रूप में पेश करते हैं और फिर उन समस्याओं को सारी दुनिया पर लादने की कोशिश भी करते हैं I” स्वच्छंद यौनाचार से उत्पन्न बहुरूपों में व्याप्त अपराध, अनियंत्रित हिंसा, नशेड़ियों की बाढ़, स्कूलों में गर्भ निरोध तथा गर्भपात की उत्तम व्यवस्था के बावजूद लाखों कुंवारी किशोरी माताओं जैसी बहुत ही गम्भीर समस्याओं से जूझ रहे साम्राज्यवादी देश एड्स और यौन शिक्षा के बहाने उन गम्भीर समस्याओं का वैश्वीकरण करने की जुगत में प्रयास करते रहे हैं I स्वछन्द यौनाचार को वैश्विक अश्लीलता में बदल कर अपने यौन उद्योग के उत्पादों का भी व्यापक बाजार खड़ा करने में सक्षम हुआ है I इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत में कण्डोम का व्यापक प्रचार किया गया था, परिवार सहित पढ़े जाने वाले दैनिक अखबारों के मुखपृष्ठ पर रंगीन, फलों के फ्लेवर के कण्डोम के पूरे-पूरे पृष्ठ के विज्ञापन आम बात हो गई थी I भारत के बाजारों में वाइब्रेटिंग कण्डोम, फ्लेवर्ड कण्डोम, सेक्स टॉयज, सेक्स डॉल, दवा दुकानों पर बिना चिकित्सीय सलाह के प्रिगनेंसी टेस्ट के आसानी से उपलब्ध किट्स, तुरत-फुरत गर्भपात की दवाएं आदि की सहजता से उपलब्धता भी उसी षड्यंत्र का हिस्सा है I नशीली दवाओं की तस्करी, पाकिस्तान से ड्रोन के माध्यम से आ रही नशीली दवाएं भी भारत की प्रतिभाशाली और अनन्त सम्भावनाओं से भरी युवा पीढी को भरमाने-भटकाने और पतनोन्मुखी करने के षड्यंत्र का ही एक हिस्सा माना जा सकता है I युवाओं को यौनाचार की तरफ आकर्षित करने के लिए फिल्मों-वेब सीरिज और विज्ञापनों की नग्नता तथा कई कार्यक्रमों के द्विअर्थी संवाद आदि भी शामिल हो सकते हैं, यह गम्भीर जांच का विषय होना चाहिए I इसी कड़ी में यूनेस्को, यूनिसेफ, नाको, एनसीईआरटी और एनजीओ द्वारा तैयार यौन शिक्षा की पुस्तक “लर्निंग फॉर लाइफ” में स्कूली विद्यार्थियों को मुख मैथुन, हस्त मैथुन, गुदा मैथुन, महंगी-सस्ती वेश्याओं , कण्डोम आदि के बारे ज्ञान दिया गया था I भला हो, शिक्षा बचाओ आन्दोलन, नईदिल्ली [अब शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नईदिल्ली] के सजग पदाधिकारियों का कि उन्होंने विकृत तथा वीभत्स यौन शिक्षा के निहितार्थों को समझा और उसके विरुद्ध पूरे देश में सशक्त वातावरण निर्मित कर यौन शिक्षा को बन्द करवा दिया I फिल्मों, विज्ञापनों और धारावाहिकों में न्यायालय, न्यायाधीशों, सेना और पुलिस की छवि को खराब करने वाले दृश्यों पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए I
क्या धार्मिक, राजनीतिक, न्यायिक, सांस्कृतिक, पत्रकारिता, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े लोग इसका विरोध करेंगे?
— डॉ. मनोहर भण्डारी