आदिदेव महादेव
जटा विराज गंगधार शीश चंद्र सोहते।
निहारते स्वरूप तेज तीन लोक मोहते।।
विराजमान कंठ नाग है त्रिशूल हाथ में।
जहाँ–जहाँ चले शिवा सदैव बैल साथ में।।
लपेट बाघ छाल अंग भस्म देह साजते।
बढ़े महेश पाँव व्योम ताल ढोल बाजते।।
निमग्न भूतनाथ ध्यान बैठ मुक्ति धाम में।
शिवा धरा समीर अग्नि नीर आसमान में।।
शिवा प्रसन्न होय बेलपत्र दूध नीर से।
प्रसून भांग घी दही गुलाल औ अबीर से।।
नमः शिवाय जाप आठ याम सोमवार को।
करे पुकार दर्श देवता लगे कतार को।।
खुले त्रिनेत्र क्रोध ताप विश्व धूम्र सा जले।
कृपा करे महेश तो मनुष्य मोद में पले।।
करे प्रणाम भक्त नीलकंठ के स्वरूप को।
कृपालु तेजपुंज आदिदेवता अनूप को।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”