इतिहास

तिरंगा झंडा,आज़ादी और, पंद्रह अगस्त।

हमारी आस्था ,हमारे अहसास में बसती है,और दिलकी धड़कनों में बहती है, मातृभूमि की मुहब्बत, देश की ताक़त ,साहस और आस्था का प्रतीक हमारा प्यारा तिरंगा झंडा ,हर भारतीय के दिल मे बसने वाली आस्था ,एकता का प्रतीक तिरंगा झंडा प्रति वर्ष अनुसार स्वतंत्रता दिवस पर यानी पन्द्रह अगस्त को फ़हराया जाएगा, और हमारी आंखें नम हो जायेंगी, होनी ही चाहिए, ए मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी,,उन शहीदों को याद करके जिन्होंने हमे आज़ादी दिलाने के लिए खुदको भारत देश के लिए करदिया।किसी बहन ने अपना भाई खोया तो किसी मां ने किसी बाप ने अपने जिगर का टुकड़ा अपना बेटा किसी ने अपना सुहाग को खो दिया जब देश को आजादी मिली जिंदगी के पल सेकंड मिनिट और घंटो में तब्दील होकर दिन और रात बदलते रहते हैं समय न किसी के रोके रुका है न कोई इसको रोक सकता है, और ये ही दिन रात महीनों और महीनों से साल बन जाए हैं और ये साल इतिहास बन कर हमे याद दिलाते हैं बीते उन लम्हातों की जो अब हमारी पहुंच से बाहर हैं।लेकिन क्या इतिहास के इन पन्नों को कभी हमने पलटने की कोशिश की है, शायद नहीं या शायद हां।ये पन्ने उन शहीदों की याद दिलाते हैं जो हमे आज़ाद कर गए।और अब हम खुली हवा में अपने मुल्क में सांस ले रहे हैं।ये उपकार है उन शहीदों का जिन्होंने अपने जान की परवाह नहीं की और अंग्रेजों से लोहा लिया और उन्हें लोहे के चने चबवा दिए।आखिरकार अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।ये आजादी आसानी नहीं मिली हमें चाहिए की हम उन शहीदों की कुर्बानियों याद करें, और आपस में मुहब्बत से मिल कर रहें। शहीदों और क्रांतिकारियों की विरासत को संभाल कर रखें।15 अगस्त , यौमे आज़ादी आजादी का ये शुभ और महत्वपूर्ण दिन हमारे मुल्क के राजनीतिक इतिहास में सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। ये वह दिन है जब भारत को फिरंगियों की 200 वर्षों की गुलामी की बेड़ियों से आज़ादी मिली थी। अंग्रज़ों के शासन काल में मुल्क की आबादी पर काफी जुल्म किए गए। ब्रिटिश हुकूमत के जुल्मों से देश की जनता को छुटकारा दिलाने के लिए सैंकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे में यह दिन उन महान क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करने का भी है, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। देश को आजाद कराने में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, मंगल पाण्डे, ,राजगुरु, भगत सिंह चंद्र शेखर आज़ाद,सुखदेव, जवाहरलाल नेहरु, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक जैसे कई क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का अहम योगदान रहा। सभी का नाम लेना मुमकिन नहीं है।एक लंबी फेहरिस्त है,क्रांति करियों की,यह दिन इन सभी क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करने और श्रद्धांजलि देने का पावन दिन है। और हमारा कार्तत्व भी।
आओ हम सब मिलकर प्रण लें कि हम इस गौरवशाली राष्ट्र के सम्मान में साथ आकर पंद्रह अगस्त पर मज़बूत भारत के तिरंगे झंडे को नमन करते हुए इसके सम्मान में अपना सर झुका कर सारे विश्व को बता दें कि हम भारतवासी एक है, तिरंगे झंडे के लिए हमअपना सर्वस्व लुटाने के लिये प्रतिबद्ध रहने की क़सम दिल से लेकर गौरवशाली भारत के नागरिक होने पर गर्व करते हैं।,आपको जैसे पता होना चाहिये कि आज़ाद” भारत देश”ही नहीं हमारी माता भी है, भारत माता ,इस धरती के कण कण में ज़र्रे ज़र्रे में हम सब की आत्मा बसती है, जब हम तिरंगे झंडे की बात कर रहे हैं, जिसके नीचे खड़े होकर गर्व से कह रहे हैं कि आवाज दो हम एक हैं। और ये हमें जानकारी होनी ही चाहिए कि हमारे राष्ट्रीय गौरव हमारा तिरंगा झंडा कब और कैसे वजूद में आया, किसने उसे बनाया ,भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम तिरंगा कहते हैं , ये तिरंगा झंडा हमारे देश की शान है ,हम भारत वासियों की पहचान है, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है । भारतीय झंडे की अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी,कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात जब महात्मा गांधी से हुई। उन्होंने इस बारे में बात की, वैंकेया की झंडों में बहुत रूचि थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा। वेंकैया ने 1916 से 1921 कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी जी से मिलकर लाल औऱ हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा। इस बीच जालंधर के लाला हंसराज ने झंडे में एक चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। झंडे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली । इस झंडे को भारत की आजादीकी घोषणा के 24 दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रुप में अपनाया । देश की स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति (1952-1962) और भारत के दूसरे राष्ट्रपति (1962-1967) डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने चक्र के महत्व को समझाते हुए कहा था कि झंडे के बीच में लगा अशोक चक्र धर्म का प्रतीक है । इस ध्वज की सरपरस्ती में रहने वाले सत्य और धर्म के सिद्धांतों पर चलेंगे । चक्र गति का भी प्रतीक है । भारत को आगे बढ़ना है । ध्वज के बीच में लगा चक्र अहिंसक बदलाव की गतिशीलता का प्रतीक है महात्मा गांधी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने केसरिया, सफेद औऱ हरे रंग से बने झंडे को स्वीकार किया। हालांकि तब झंडे के बीच में अशोक चक्र भीशामिल कर लिया गया था, इसे पंद्रहअगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की आज़ादी के कुछ ही दिन पूर्व 22 जुलाई , 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था ।जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं , जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है , बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के शुभ , विकास और उर्वरता को दर्शाती है । ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3 : 2है । सफ़ेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें 24 आरे {तीलियां }होते हैं । यह इस बात प्रतीक है, कि भारत निरंतर प्रगतिशील है , और विकास की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा है,इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है, व इसका रूप सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ के शेर के शीर्ष फ़लक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है । भारतीय राष्ट्रध्वज अपने आप में ही भारत की एकता , शांति , समृद्धि और विकास को दर्शाता हुआ दिखाई देता है । हमें अपने देश के झंडे पर गर्व है 15 अगस्त को मनाने का मक़सद हर भारत वासी में देशभक्ति की भावना का संचार करना है .उन शहीदों को याद करना है, जिनकी कुरबानियों का कारण ही हम आज स्वतंत्र हैं, . गर्व से कहें !सब भारत माता की जय, तिरंगे झंडे की जय, वंदे मातरम,वंदे मातरम, स्वतंत्रता दिवस अमर रहे।

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।