सोशल और मैसेजिंग मीडिया की काली दुनिया
सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप की दुनिया भयकर काली है, षडयंत्रकारी है, भ्रष्टचारी है, आतंकी भी है और लोकतंत्र खोर भी है। सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप की दुनिया अपनी काली कमाई भी छिपाती है और भ्रष्ट शासकों का अप्रत्यक्ष समर्थन भी करती है, इस्लामिक कट्टरपंथ को भी खादपानी देती है, आतंकी दुनिया को उसके विचारों को फैलाने का मंच भी देती है। आतंकी दुनिया सोशल मीडिया और मैसेजिंग दुनिया को अपने आतंकी विचार के प्रचार-प्रसार और गुर्गे ढूढने के लिए करती है। क्या यह सही नहीं है कि फेस बुक ने चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्टपति डोनाल्ड टम्प को प्रतिबंधित कर दिया था? क्या यह सही नहीं है कि भारत के पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया और मैसेंजिंग मीडिया भारत के लोकतंत्र को समाप्त करने और आरक्षण समाप्त करने के अफवाह को फैलायां था? सोशल और मैसेजिंग दुनिया अपनी अप्रत्यक्ष कमाई छिपाती है और टैक्स की भी खूब चोरी करती है। फिर भी आप इन तथ्यों से सहमत नहीं है तों फिर मैसेंजिंग एप के मालिक पावेल ड्यूरोव की गिरफ्तारी और उस पर लगे टैक्स की चोरी का प्रसंग उदाहरण और प्रमाण के तौर पर देख लीजिये।
मैसेजिंग एप टेलीग्राम के संस्थापक पावेल ड्यूरोव की गिरफ्तारी कोई साधारण नहीं है, इनकी गिरफ्तारी से कई अनैतिकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद ही नहीं बल्कि राजनीतिक खेल को नियंत्रित करने जैसी करतूतों का भी पर्दाफाश होता है। आम तौर पर यह स्थापित तथ्य है कि बडे लोग सरकारी टैक्स की चोरी करते ही है, सरकारी नियमो को तोडते ही है और सरकारी योजनाओं का संहार कर अपनी झोली भरते ही है। इनकी पहुंच सत्ता के सर्वोैच्च शिखर तक होती है, इसलिए ये जेल जाने से बच जाते हैं, कानून के प्रताड़ना का शिकार होने से बच जाते हैं। इनके पक्ष में आसपास की दुनिया तो खडी ही रहती है, इसके अलावा इनके पक्ष में वैश्विक दुनिया खडी हो जाती है, इनके पक्ष की दुनिया यह कहती है कि इतने बडे कारपोरेट घराने, इतने बडे उद्योगपति और इतनी बड़ी हस्ती की गिरफ्तारी या फिर उस पर मुकदमा दर्ज कराने का अर्थ यह है कि संबंधित देश का लोकतंत्र ठीक से काम नहीं कर रहा है, इतना ही नहीं बल्कि लोकतंत्र का संहार हो गया है, अभिव्यक्ति की आवाज का कोई अर्थ नहीं रह गया है, अभिव्यक्ति की आवाज को सत्ता की शक्ति से दबाया जा रहा है, कुचला जा रहा है, शक्तिहीन किया जा रहा है। अदालतें भी ऐसी हस्तियों के प्रति चमत्कृत हो जाती हैं, प्रभावित हो जाती हैं, पक्ष में सक्रिय हो जाती हैं और सरकार से प्रश्न पर प्रश्न खडा कर देती हैं, सुनवाई पर सुनवाई करती है, सुबह, दो पहर, शाम रात और भोर मे भी अदालते लग जाती हैं। फिर ऐसी हस्तियों को जमानत भी मिल जाती है। दारू बेचने और पिलवाने के अपराध में जेल में बंद अरविन्द केजरीवाल इसका उदाहरण है। लोअर कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जितनी तारीखें अरविंद केजरीवाल को मिली, जितने विन्दुओं पर लोअर कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की उतने विन्दुओं पर एक आम आदमी को अपने बचाव में सुनवाई का अवसर दिया जा सकता है? आम आदमी से संबंधित मुकदमों में ऐसा अवसर तो देखने का मिलता ही नहीं, ऐसा उदाहरण तो खोजने से मिलता नहीं। बीबीसी के टैक्स चोरी का मामला क्या भारत में दब नहीं गया, राजनीति प्रबंधन का शिकार नहीं हो गया? टैक्स चोरी के आरोप में बीबीसी के संचालकों की गर्दन भारत सरकार नाप सकी?
पावेल ड्येरोव भी एक हस्ती है, वह सिर्फ फ्रांस की हस्ती नहीं है बल्कि दुनिया की हस्ती है। क्योंकि उसका मैसेजिंग एप सिर्फ फ्रांस मे चर्चित और स्थापित नहीं है। उसका मैसेजिंग एप टेलीग्राम दुनिया भर में चर्चित और स्थापित है। यह कहना सही होगा कि टेलीग्राम सहज और आसान मैसेजिंग एप है। हवाटसप से लाख गुणा अधिक सहज और आसान है। जहां पर हवाटसप मैसेजिंग को जांच पडताल की सीमा रेखा में ही रखता है और भारी मैसेजिंग को प्रसारित करने में असहज और कठिन बना देता है, भारी वीडीओ और अन्य मैसेजिंग हवाटसप आदि मैसेजिंग एप से भेजना बहुत ही कठिन है। लेकिन टेलीग्राम भारी से भारी वीडीओ और अन्य सामग्री को आसानी से भेज देता हैं। यही कारण है कि कई देशों में टेलीग्राम की पहुंच और वर्चस्व खास है। रूस में कभी इस एप का वर्चस्व था। रूस से अलग हुए देश जैसे यूक्र्रेन, अजरबैजान और साउथ अफ्रीका में टेलीग्राम का चलन लोकप्रिय है। इसके साथ ही साथ फ्रांस में भी इस एप का दबदबा रहा है। पावेल ड्यूरोव फ्रांस का मूल निवासी नहीं है। वह मूल रूप से रूस का निवासी है। रूस में ही उसने टेलीग्राम को खडा किया था और इसकी व्यूह रचना वहीं तैयार की थी। लेकिन रूस के शासक पुतीन की गिद्ध दृष्टि के कारण उसे रूस छोडकर भागना पडा। रूस छोड कर भागने के बाद अरब के देशों में भी व्यापार की खोज की थी। इसके बाद उसने फ्रांस की नागरिकता ली थी और टेलीग्राम को फ्रांस से ही संचालित कर रहा था। उसकी योजना टेलीग्राम को विश्वव्यापी बनाने की थी और वह फेसबुक ह्वाटसप के साथ ही साथ टिवट्र को भी चुनौती देकर पछाडना चाहता था, इन्ही योजनाओं पर वह काम कर रहा था। इस दौरान उस पर टैक्स की चोरी का आरोप लगा। फ्रांस सरकार के संबंधित विभागों से टैक्स की चोरी की जांच में उसने सहयोग भी नहीं किया। जांच में सहयोग न करना उसके लिए भारी पड गया और गिरफ्तारी का कारण भी बन गया।
फ्रांस का वह हस्ती था फिर गिरफ्तारी से बच नहीं सका? यह प्रश्न बहुत ही रहस्य वाला है। पावेल ड्यूरोव अगर भारत मे होता तो फिर टैक्स एजेसियों पर आरोपों का जंजाल खड़ा हो जाता, मीडिया से लेकर राजनीति, कोर्ट और जनता भी प्रश्न पूछति। टैक्स जांच एजेसियेां को जांच करने की जगह मीडिया, कोर्ट और राजनीति के प्रश्नों को जवाब देने में ही पसीना छूट जाते और फिर जांच कमजोर हो जाती और प्रभावित हो जाती। टैक्स चोरी का आरोप शाहरूख खान,आमिर खान, अक्षय कुमार, करीना कपूर, माधुरी दीक्षित जैसे हीरो-हिरोइनों पर रहा है, टैक्स चोरी का आरोप दिल्ली के दर्जनों वकीलों के उपर रहा है, देश के सैकडों हजारों कारपोरेट घरानों और उद्योगपितयों पर टैक्स की चोरी का आरोप रहा है फिर भी टैक्स चोरी के आरोप मे किसी फिल्मी हीरो-हिरोइनों को जेल जाते हैं देखा है, सुना है, इसी प्रकार किसी बडे कारपोरेट घरानों और बडे उद्योगपतियों को टैक्स की चोरी करने के आरोप में जेल जाते हुए देखा है? यहां तो टैक्स की चोरी करने के बाद सीनाजोरी कर ईमानदार घोषित करने की परमपरा है। अगर पावेल डयूरोव भारत का नागरिक होता और उस पर भारत में टैक्स चोरी करने के आरोप होते तो फिर कदापि वह जेल नहीं जाता। फ्रांस की जनता प्रशंसा की पात्र है जो पावेल ड्यूरोव के पक्ष में नहीं खडी हुई। फ्रांस की जनता यह नहीं कही कि पावेल एक हस्ती है इसलिए उसे मत गिरफ्तार करो। फांस की सरकार पावेल की शक्ति से नहीं डरी। फ्रांस ने यह नहीं समझा कि दुनिया का सोशल मीडिया में उसकी बदनामी हो सकती है। सोशल मीडिया में उसकी छबि खराब हो सकती है और उस पर लोकतंत्र को कुचलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कब्र खोदने जैसे अंतिरंजित आरोप भी लग सकते हैं।
अभिव्यक्ति के नाम पर सोशल और मैसेजिंग दुनिया के मालिकों को अराजक नही बनाने देना चाहिए, उनके आतंकवादी सहचर होने के प्रमाणों को खारिज नही करना चाहिए, उनकी टैक्स चोरी की करतूत पर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। प्रांस ने वीरता दिखायी है, दृढता दिखाया है। पावेल ड्यरोव जैसी हस्ती की गर्दन उसने नापी है। खासकर अमेरिका और भारत को भी इसी तरह की नीतियां अपनानी चाहिए। अधिकतर सोशल मीडिया के संस्थापक अपेरिका में रहते हैं और वहीं से अपना खेल दुनिया भर करते हैं। भारत सोशल मीडिया और मैंसेजिंग मीडिया संस्थानों का आसान शिकार है। भारत को भी फ्रांस की नीति अपनानी चाहिए और सोशल मीडिया व मैसेजिंग मीडिया के संचालको की गर्दन भारत विरोधी भावनाओं के खिलाफ नापनी चाहिए।
— आचार्य विष्णु श्रीहरि