लघुकथा

दिल के रिश्ते

माँ तो नहीं रही, लेकिन हाँ माँ के नाम कुछ बीमा था, बैंक बैलेंस भी था, क्योंकि माँ गवर्नमेंट कॉलेज में अध्यापिका पद पर कार्यरत थी। वाईस प्रिंसिपल थी वो, क्योंकि पिता से अलग रहती थी लेकिन तलाक शुदा नहीं थी। क्योंकि तलाकशुदा नहीं थी, इसलिए माँ के पैसों पर पिता का अधिकार था। बैंक में जाकर जब रुपये निकालने का वक़्त आया, तब पता लगा कि वो पैसे नहीं निकाल सकती, क्योंकि वो नाबालिग थी कोर्ट के अनुसार पैसों पर पहला अधिकार पति का ही होता है। न जाने क्यों आज आशा को अपना अतीत याद आ रहा था और फिर से पुरानी यादों में खो गयी।
माँ सर्विस की वजह से अपने मायके में ही रहती थी और पिता दिल्ली में डेसू में कार्यरत थे। जब माँ का स्वर्गवास हुआ तब मामा ने पिता को फोन भी किया, लेकिन माँ को अग्नि देने के लिए भी वो नहीं आये। माँ के स्वर्ग सिधारने के बाद आशा अपनी ननिहाल में ही रहती थी, इसलिए पिता के पास जाना ही नहीं हुआ। माँ के रुपये निकालने के लिए पिता को फ़ोन किया गया, उन्हें सूचित किया गया कि आपकी पत्नी का काफी बैंक बैलेंस है।
पता नहीं क्या हुआ जो शख़्स माँ को अग्नि देने भी नहीं आ पाया, वह रुपये की सूचना पर तुरंत आ गया। क्योंकि सरकारी बात थी, तो कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया गया और पेशी के लिए दोनों पक्षों को बुलाया गया। उस समय मेरी उम्र सिर्फ साढ़े आठ साल थी, क्योंकि माँ ने मेरा नॉमिनी अपनी बहन को बनाया था, जो स्वयं भी सरकारी नौकरी में थी, लेकिन मैं हमेशा ननिहाल में ही रही, जहाँ नानी मामा ने मेरी देखभाल की थी। मौसी बाहर रहती थीं, केस शुरू हुआ जिसमें हर बार मौसी को छुट्टी लेकर आना पड़ता था। मामा की भी सरकारी नौकरी लग चुकी थीं। माँ ने अपनी मृत्यु से ठीक 11 दिन पहले नौकरी छोड़ी और ठीक उसी दिन मामा को नौकरी मिली थी। मामा हमेशा कहते थे कि तेरे भाग्य से ही मेरी नौकरी लगी है क्योंकि ईश्वर जब एक रास्ता बंद करता है, तभी दूसरा रास्ता भी खोल देता है।
मामा, मौसी हर तारीख पर मुझे कोर्ट लेकर जाते थे और वकील मुझे बहुत सारी बातें समझाते थे। पापा के पास हम लोग कभी कभी जाते थे, लेकिन पापा मुझसे मिलने कभी नहीं आये तो मन में एक डर था कि पापा अगर मुझे ले गए तो क्या होगा, क्योंकि माँ के जाने के ठीक 6 महीने बाद ही पापा ने दूसरी शादी कर ली थी।
हमारे वकील हमेशा मुझे कुछ बातें समझाते और मैं उन बातों को याद करती थी। एक 9 साल के बच्चे को आप जितना समझाएंगे, वो उतना ही समझ सकता है। केस करीब 4 साल चला न जाने कितनी तारीख पड़ीं और कितना पैसा खर्च हुआ। आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन मेरी जिंदगी का फैसला होना था। 13 साल की उम्र और गवाही बॉक्स में चार घंटे लगातार खड़े रहना, वकीलों की आपसी जिरह और मुझसे अनगिनत सवाल जवाब जिससे मैं टूट जाऊँ और पापा मुझे माँ के रुपयों के साथ अपने साथ ले जा सकें, लेकिन आप ही बताएँ जिसके साथ आप कभी नहीं रहे उस पिता के साथ माँ के बिना कैसे रह पाते? जिस पिता ने माँ के जाने के बाद माँ के अग्निदाह तक में शामिल होना उचित नहीं समझा, वो माँ के पैसों के लिए मुझे ले जाने क्यों आ गया? क्या दुनिया में खून के रिश्तों का कोई मोल नहीं? क्या मैं उनकी बेटी नहीं थी? क्या आज की दुनिया में पैसा ही सब कुछ है? क्या वो पिता अपनी 8 साल की बच्ची के दर्द को नहीं समझ पाया लेकिन माँ के रुपयों की खातिर दौड़ आया? पापा के वकील ने मुझसे अनगिनत क्रॉस question किये और मुझे तोड़ने की पूरी कोशिश की जिससे पापा की जीत हो जाये । लेकिन कहते हैं न कि सत्य की जीत होती है और जज ने फैसला मेरे हक में दिया और मम्मी का बैंक बैलेंस मेरे नाम कर दिया गया कि जब मैं बालिग हो जाऊँगी तब निकाल सकती हूं और मेरे मामा मुझे अपने साथ ले आये ।
आशा अचानक रोती हुई वर्तमान में आ चुकी थी लेकिन अतीत का काला साया आज तक उसे उन बातों को सोचने पर मजबूर करता रहा कि आखिर रिश्तों का मापदंड पैसा है या दिल के रिश्ते?

— वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017