आदी हम
जली हुई रोटियां खाने के आदी हम
देख रहे आंखों से खुद बर्बादी हम
जाने कब तक खुली आंख से सोएंगे
बचा पाएंगे कब तक यह आजादी हम
मन अंदर से काला है दिखता ही नहीं
ऊपर से पहने हैं उजली खादी हम
नहीं किसी का दोष डीएनए गड़बड़ है
करते हैं खुद ही अपनी बर्बादी हम
लिखा झूठ इतिहास वही पढ़ते आए
चरखे से लेकर आए आजादी हम
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव