नवीन प्रभा को लेकिन आगे लाना होगा
जब तक पीले पात तरू के नहीं झरेंगें
कैसे नव पल्लव जग का सिंगार करेंगे?
कल तक जो फूलों की माला गले पड़ी थी
नहीं हटी तो कैसे कलियाँ हार बनेगी?
नयी कोंपले सदा रही धरती का गहना
बरगद को अपना अस्तित्व हटाना होगा
माना कि स्वर्णिम युग था वह समय पुराना
नवीन प्रभा को लेकिन आगे लाना होगा।
सूरज कितना भी दमके पर नहीं है सोता
छोटा-सा दीपक भी आभा कभी ना खोता
लेकिन जब भी जुगनू की है बारातें सजती
उपवन का कोना-कोना है जगमग होता
अंधियारा जब अट्ठाहस कर इतराएगा
नयी मशालों को फिर हमें जलाना होगा
माना कि स्वर्णिम युग था वह समय पुराना
नवीन प्रभा को लेकिन आगे लाना होगा।1।
आओ नये परिदों आकर पर फैलाओ
छोड़ नीड़ को आज गगन पर तुम छा जाओ
ताक रहा जग तुम्हें समय की माँग है बदली
नये रंग से नये विश्व का रूप सजाओ
ग्रहण लगे ना जिसको जग में युगों-युगों तक
ऐसा दिनकर तुमको नया बनाना होगा
माना कि स्वर्णिम युग था वह समय पुराना
नवीन प्रभा को लेकिन आगे लाना होगा।2।
सदा पुरानी पीढ़ी नव को कहती आयी
और नविनता संग मिली नव जोत जलायी
जब-जब नूतन ने बीते है कल की मानी
नये-पुरातन ने मिल रच दी नयी कहानी
बहुत पुरानी शमशीरों को देखा हमने
नये खंजरों पर अब धार लगाना होगा
माना कि स्वर्णिम युग था वह समय पुराना
नवीन प्रभा को लेकिन आगे लाना होगा।3।
बरखा बीते बाद शरद की रूत है आती
‘शरद’ गुजरता तभी शिशिर शबनम बरसाती
चढ़ बसंत फूलों के रथ पर तब आता है
कोयल की बन तान जगत को हरषाता है
आता है फागुन टेशू की खुशबू भरकर
झड़ पलाश को उपवन नया सजाना होगा
माना कि स्वर्णिम युग था वह समय पुराना
नवीन प्रभा को लेकिन आगे लाना होगा।4।
— शरद सुनेरी