पते सारे जिनके जलाने चले थे
भूले नही जो भुलाने चले थे
पते सारे जिनके जलाने चले थे
कई रातों से सोये अरमां नही हैं
जिनको शब में सुलाने चले थे
कभी सुबुक्सरी सताने है लगती
वफा कभी कुछ बताने है लगती
नजर डबडबायी बहुत शोर करती
आलम हम जिनको सुनाने चले थे
निशा नूर का यहां नाता पूराना
मुश्किल बड़ा संग इनका छुड़ाना
फानूस था हिज्र के ‘‘राज’’ का जो
बस! आग उसी में लगाने चले थे
राज कुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी उ0प्र0