गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

एक सुनहरे तारों वाला जाल सियासत है भैया।
बीत गया जो उस युग का कंकाल सियासत है भैया।

आरोपों-प्रत्यारोपों के वार निरन्तर जारी हैं,
आम-जनों के तो जी का जंजाल सियासत है भैया।

इसके, उसके, सबके दर पर ईडी-सीबीआई है,
जाने किस-किस मुद्दे की पड़ताल सियासत है भैया।

मगरमच्छ पाला करता था अपने दुश्मन की ख़ातिर,
‘शान’ फ़िल्म का खलनायक शाकाल सियासत है भैया।

खींच रहे हैं वे वोटों को लालच की ज़ंजीरों से,
सब कुछ मुफ़्त लुटाने वाला माल सियासत है भैया।

वादों की किसने देखी है, माँग रहे हैं लोग नक़द,
यह कहिए अब पैसों की टकसाल सियासत है भैया।

गिरगिट जैसा रंग बदलने में सारे ही माहिर हैं,
आदर्शों की नगरी में कंगाल सियासत है भैया।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)