ग़ज़ल
प्यार हम जिनसे बेशुमार करें
उनकी बातों का एतबार करें
हौसले अपने उस्तवार करें
ख्वाहिशें चाहे बेशुमार करें
मसअले भी सुलझते जाएंगे
क्या है वज़ह जरा विचार करें
ख़्वाब करने हैं सच तो फिर थोड़ा
अपनी आदत में भी सुधार करें
है नया शह्र अजनबी हैं सभी
हम किसे अपना राज़दार करें
बेवफ़ा से वफ़ा की चाहत रख
क्यूँ भला दिल को बेकरार करें
दिल की जिद है रमा भुला के गम
कुछ घड़ी खुद से भी तो प्यार करें
— रमा प्रवीर वर्मा