देर भी अंधेर भी
झूठे दिलासों में जीने वालों
इस जिंदगी में देर भी होता है,
और अंधेर भी होता है,
बस आश्वासन थोक में मिलता है,
हर गली हर चौक में मिलता है,
नेता ने दिया अधिकारी ने दिया,
निजी ने दिया सरकारी ने दिया,
मगर हकीकत कुछ और है,
क्यों बदलता नहीं कोई दौर है,
पुलिस वालों की जरूरत हो तो देर,
डॉक्टर की जरूरत हो तो देर,
मौक़ा देख मरीज निकल लेता है देर सबेर,
परिजन झुंझलाहट में ऊपर देखते हैं,
और कहते हैं उनकी यहीं मर्जी थी,
लेकिन लोगों की आस फर्जी थी,
यहां कोई किसी की आस
पूरा करने वाला नहीं है,
अंधेरे में खुद जलाना पड़ता है दीप
खुद से बेवक्त होता उजाला नहीं है,
प्रकृति का सब ताना बाना है
जिसका कोई चितेर नहीं है,
कभी धोखे में रह मत कहना कि
यहां देर है अंधेर नहीं है,
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहोगे तो
देर भी होगा अंधेर भी होगा।
— राजेन्द्र लाहिरी