गीत गुनगुनाऊं
गीत गुनगुनाऊँ
या गजल कोई गाऊं
ओ रुठी हुई जिन्दगी
मैं तुझे कैसे मनाऊं.
तू सताती भी है बहुत
और रुलाती भी है बहुत
यह बात तुझको है पता
या मैं तुझे बताऊं,,
ये पता तो है मुझे
तू देगी गम और खुशी
गम बांट कर दूसरों का मैं
खुशियाँ ही लुटाऊं.
तू दे दे मुझको
इतनी ताकत,,
मैं हौसला बहुत बढाउं
जब भी तू हो उदास
मैं तुझे हंसाऊं.
— अमृता राजेन्द्र प्रसाद