कहानी

व्हिस्की विला – भाग 3

वाटर जार से एक ग्लास पानी लेकर पीने के बाद जब मै कार के पास पहुंचा तो ज्वाइस उसमे पीछे के सीट पर पहले से बैठी हुई थी।

ड्राइविंग सीट पर बैठकर मैने बैक मिरर से एक नज़र ज्वाइस को देखा, वो नज़रे झुकाये बैठी थी।  उसकी मां की मौत का दुःख उसके चेहरे पर पसरा हुआ था। मैने गाड़ी स्टार्ट की और बंगले के बाहर निकल गया।

हॉस्पिटल में अपनी का मृत चेहरा देखके ज्वाइस यूँ दहाडे मार के रोएगी, अंदाज़ा नहीं था। ज्वाइस कई बार शिथिल होकर फर्श पर गिर गई। दो महिला पुलिस कांस्टेबल उसे सँभालने में खुद को नाकाफी महसूस कर रही थी।

इन्वेस्टिगेशन आफिसर ने भी ज्वाइस को काफी दिलासा दी और उसकी दिलसायें भी कारगर नहीं हुई तो उसने मुझे इशारा करके उसे समझाने को कहा।

मैने ज्यों ही अपनी कोशिश शुरू की जवाइस के गले का रूदन हिचकियों में बदल गया, आंसुओं में इज़ाफ़ा हो गया और वो मेरे बगल से गुजर के जाकर एक बेंच पे बैठ गई।

ज्वाइस की कम होती हिचकियों को देखकर इन्स्पेक्टर उसके करीब आते हुए पूछा ‘आप मक़तूला की बेटी  हैं ?’

ज्वाइस ने सर उठाके उसे देखा, कुछ बोली नहीं। उसे खामोश देखकर इन्स्पेक्टर ने अपना परिचय देते हुए कहा ‘मैं इसंपेक्टर नवेद खान हूँ, मैं ही आपके अम्मी के मर्डर की इन्वेस्टिगेशन कर रहा हूँ।’ 

ज्वाइस ने अपने पर्स से सफ़ेद रुमाल निकाल के अपनी आँखों को साफ़ करके इन्स्पेक्टर से कहा ‘वो मै समझ गई कि आप मेरी मॉम के मर्डर की इन्वेस्टिगेशन कर रहे हैं  पर माफ़ करें मैं मक़तूला की बेटी नहीं हूँ।’

ज्वाइस की बात सुनके इन्स्पेक्टर नवेद खान के चेहरे पर बेहद ही असमंजस के भाव थे। ज्वाइस को आश्चर्य से देखते हुए उसने पूछा ‘अभी आपने कहा कि आप मक़तूला की बेटी नहीं हैं।’ कुछ दूर खड़े मेरी तरफ इशारा करते हुए  इन्स्पेक्टर ने ज्वाइस से कहा ‘जबकि उस शख्स ने मुझे बताया कि आप मक़तूला की बेटी हैं।’

‘क्या गालव ने ऐसा कहा कि मैं मक़तूला की बेटी हूँ  ?’  कहते हुए ज्वाइस की आंख्ने अचरज में थीं और उसने मुझे आवाज़ देकर पास आने को कहा।

मैं तेज कदमो से चलकर जैसे ही उनके करीब पहुंचा ‘ज्वाइस ने मुझसे पूछा ‘अब जबकि मैं अपनी मॉम की मौत से कुछ सोचने – समझने की कंडीशन में नहीं हूँ तो ये कौन सी बेसिरपैर की बातें आप हवा में उड़ा रहे हैं।’

ज्वाइस की बात का मतलब न समझते हुए मेरी नज़र जब इन्स्पेक्टर से टकराई तो मैने उसकी आँखों में अपने लिए गुस्से का ज्वार – भाटा जन्म लेते हुए देखा।

मैं ऊपर बरसने वाले उसके गुस्से की थाह ले रहा था तभी मुझे खामोश देख कर इन्स्पेक्टर नवेद खान ने सख्त लहज़े में मुझसे पूछा ‘गालव ये लड़की कह रही है कि ये मक़तूला की बेटी नहीं है। अगर ये मक़तूला की बेटी नहीं है तो फिर ये कौन है और मक़तूला की बेटी कहाँ हैं।’

इन्स्पेक्टर की बात से मैं मुआमले की तह समझ के कुछ बोल पाता उससे पहले ज्वाइस ने अपने स्थान से उठते हुए पूछा ‘गालव कौन है ये मक़तूला जिसे मैं जानती तक नहीं और आपने मुझे उसकी बेटी बना दिया है।’

‘ज्वाइस मैम आप समरीन मैडम की बेटी हैं?’ मैने छोटा सा सवाल इसलिए पूछा जिससे इंस्पेकटर के गुस्से को परवान चढ़ने से पहले में दफन कर सकूँ।

‘हाँ मेरी मॉम का नाम समरीन है जो अब इस दुनिया में नहीं लेकिन ये मक़तूला कौन है जिसकी ये इन्स्पेक्टर मुझे बेटी बता रहें है।’

ज्वाइस की बात का मर्म मै समझ गया था। और सच कहूं तो बात का मतलब समझते ही मेरे ओठों पे न चाहते हुए भी इस इतने ग़मगीन माहौल में भी हंसी की एक मासूम खरगोश फुदक पड़ी थी।

‘ज्वाइस मैम वो क्या है उर्दू या फ़ारसी में औरत की डेड बॉडी को मक़तूला कहते हैं। इन्स्पेक्टर साहब असल में आपकी मॉम की बात कर रहे हैं।’

मेरी बात खत्म होते ही ज्वाइस और इन्स्पेक्टर नवेद दोनों की ओंठ मैने आश्चर्य से गोल होते देखे। ज्वाइस के अचरज में पड़ने का सबब मैं जानता था, कि वो मक़तूला किसे कहते हैं इससे पहले नहीं जनाती थी मै इंस्पेकटर के हैरतज़दा होने का सबब उस वक्त नहीं जानता था।

ख़ैर जल्दी ही मुझे इन्स्पेक्टर के आश्चर्य से गोल होते ओंठों  मुझ पे खुल गया जब वो मुझसे और ज्वाइस से मुखातिब होकर व्यंगात्मक लहजे में बोला ‘ताज्जुब की बात है एक मुस्लिम माँ – बाप की बेटी मक़तूला का मतलब नहीं  जानती।’

ज्वाइस ने दुःख और गुस्से से इंस्पेकटर को देखते हुए कहा ‘मेरा बाप मुस्लिम नहीं है’ इसके बाद वो वहां नहीं रुकी और जाकर कार में बैठ गई।

ज्वाइस की कही इस बात ने इन्स्पेक्टर को एक बार फिर हैरत में डाल दिया था। वो इस बात का मतलब जानने के लिए मुझसे कुछ पूछना चाहता था पर न जाने क्यों इरादा बदलते हुए बोला ‘मिस्टर गालव आप ज्वाइस को लेकर घर जाइये। पोस्टमार्टम होने के बाद मै इत्तला कर दूंगा तब वो अपनी अम्मी की बॉडी ले जा सकती हैं।’

मैं बिना कुछ बोले सिर्फ इकरार में सर हिलाके वहां से चल दिया तो मुझे पीछे से इंस्पेकटर नवेद खान की सख्त आवाज़ सुनाई दी ‘और हाँ गालव आप किसी भी हालत में कानपुर से बाहर नहीं जायँगे।’

इन्स्पेक्टर की बात सुनकर मेरे शरीर में यूँ झुरझरी दौड़ी जैसे मैने अपने मेरे पैर में लिपटा हुआ कोबरा देख लिया हो।     

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 6) वर्जित (उपन्यास) 7) अरीबा (उपन्यास) 8) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 9) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 10) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 11) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 12) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 13) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास) 14) इंद्रप्रिया (ऐतिहासिक उपन्यास) 15) छिताई (ऐतिहासिक उपन्यास) 16) सिंधुसुता (ऐतिहासिक उपन्यास) 17) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 18) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 19) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 20) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 21) हो न हो (काव्य संग्रह) 22) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com