उसकी आँखों में अजीब सा ख्वाब
शाम की हल्की सी ठंडक थी। स्कूल की इमारत की पुरानी दीवारें, जैसे हर रोज़ की तरह आज भी कोई नया राज़ अपने सीने में छुपाए बैठी थीं। बरामदे में चलते हुए उस नौजवान उस्ताद के कदमों की आहट, दूर तक फैल रही थी। उम्र कोई तेईस-चौबीस बरस, आँखों में ताजगी और चेहरे पर मासूमियत की झलक। उसके हाथ में किताबें थीं, मगर दिल में किसी और ही किताब के पन्ने खुल रहे थे।
उधर, एक और कमरा था, जहाँ बैठे हुए थे,मिस सहर, और दीगर हमउम्र टीचर जो यही पढ़ते थे, और सहर अपनी डायरी में कुछ लिख रही थीं। उनकी नज़रें कभी-कभी खिड़की से बाहर जातीं, जहाँ वही नौजवान उस्ताद बच्चों को पढ़ा रहा था। दिल में एक अजीब सी हलचल थी,शायद ये मुहब्बत की पहली दस्तक थी, जिसे वो खुद से भी छुपा रही थीं।
मगर कहानी यहीं नहीं रुकती। उसी क्लास में एक तलबा,आयशा, जिसकी उम्र मुश्किल से सत्रह-अठारह रही होगी, अपने उस्ताद की हर बात को दिल से लगा बैठी थी। वो जब भी उसे पढ़ाते हुए देखती, उसकी आँखों में अपने लिए एक अजीब सा ख्वाब तैर जाता। आयशा की सहेलियाँ अक्सर उसे छेड़तीं, “तू तो बस उस्ताद जी की बातों में ही खोई रहती है!” मगर वो सिर्फ मुस्कुरा देती, दिल की बात जुबां तक कब आई थी?
एक रोज़ स्कूल की लाइब्रेरी में, तीनों की नज़रें एक ही किताब पर जा टकराईं। किताब का नाम था—”इश्क़ के रंग”। मिस सहर ने किताब उठाई, उस्ताद जी ने मुस्कुरा कर कहा, “शायद ये किताब हमें बहुत कुछ सिखा सकती है।” आयशा ने झिझकते हुए किताब की तरफ़ हाथ बढ़ाया, उसकी उंगलियाँ उस्ताद जी की उंगलियों से हल्के से छू गईं। एक लम्हे के लिए सब कुछ थम सा गया।
बरसात की एक शाम, स्कूल के बरामदे में, आयशा अकेली बैठी थी। उस्ताद जी आए, उनके हाथ में वही किताब थी। बोले, “कभी-कभी मुहब्बत उम्र नहीं देखती, बस दिल से दिल तक पहुंच जाती है।” आयशा की आँखों में आँसू थे,खुशी के, तड़प के, और उस अनकहे इश्क़ के।
मिस सहर दूर से ये मंजर देख रही थीं। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा,
“इश्क़ की राहें अजीब होती हैं,
कभी हमसफर बनाती हैं,
कभी तन्हा छोड़ जाती हैं।
मगर हर दास्तान में एक हुस्न छुपा होता है,
मसूम लम्हों की सरहद पर।”
बरसात की हल्की बूंदें, स्कूल की पुरानी दीवारें, लाइब्रेरी की किताबों की खुशबू, और दिलों में उठती मासूम हलचल,हर मंजर में इश्क़ की एक नई तासीर थी।
कभी किताब के पन्नों में, कभी बारिश की बूंदों में, और कभी तलबा की झुकी नज़रों में,इश्क़ हर जगह मौजूद था, बेमिसाल, बेआवाज़।
अब दोनों ,मिस सहर और आयशा,अपने-अपने दिल में एक ही शख्स की मुहब्बत लिए घूम रही थीं। दोनों को अंदाज़ा था कि उनकी चाहत एक ही मंज़िल की तरफ़ जाती है, मगर रास्ते अलग हैं। कभी-कभी क्लासरूम के बाहर उनकी आँखों में एक अजीब सी तकरार झलक जाती,बेवजह की बहस, छोटी-छोटी बातों पर नाराज़गी, और फिर गहरी ख़ामोशी।
असल वजह थी—वो जलन, जो दिल के किसी कोने में चुपचाप घर कर चुकी थी।
एक शाम, स्कूल खत्म होने के बाद, मिस सहर ने अपने साथी रहान साहब,को अपने घर बुलाया। बारिश की हल्की फुहारें, कमरे में चाय की खुशबू, और दिल में बेताबी। तनहाई और दोनों,
रहान साहब थोड़े हैरान थे, मगर मिस सहर की आँखों में आज कुछ अलग था।
“आपको शायद अंदाज़ा नहीं, मगर मैं कब से अपने दिल की बात छुपा रही हूँ,” मिस सहर ने धीमे लहजे में कहा, “मुझे आपसे मुहब्बत हो गई है।”
कमरे में एक लम्बी ख़ामोशी छा गई।
रहान साहब के लिए ये सब अचानक था। उनके दिल में भी हलचल थी, मगर वो उलझन में थे।
आयशा की मासूम मुहब्बत, उसकी आँखों में तैरती उम्मीदें, और अब मिस सहर का खुला इज़हार,रहान साहब को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दें।
उनकी आँखें झुक गईं, आवाज़ में हल्की सी कंपकंपी थी,
“मुझे माफ़ कीजिए, मैं… मैं खुद नहीं जानता कि मेरे दिल की राह कौन सी है। मैं किसी का दिल नहीं दुखाना चाहता।”
मिस सहर ने मुस्कुराने की कोशिश की, मगर उनकी आँखों में नमी थी।
“इश्क़ हमेशा आसान नहीं होता, रहान साहब। कभी-कभी ये हमें खुद से भी दूर कर देता है।”
बारिश की बूंदें खिड़की से टकरा रही थीं, कमरे में हल्की सी उदासी तैर रही थी। मिस सहर ने अपने जज़्बात कह दिए थे, मगर जवाब अधूरा था। रहान साहब की उलझन, आयशा की मासूम ख्वाहिशें, और मिस सहर की तड़प,तीनों दिलों में एक अनकहा दर्द था।
रात के सन्नाटे में रहान साहब की बेचैनी बढ़ती रही।
कभी आयशा की मुस्कान याद आती, कभी मिस सहर की नम आँखें।
इश्क़ की ये दास्तान अब एक नए मोड़ पर थी,जहाँ फैसले आसान नहीं थे, और हर दिल में तड़प बाकी थी।
शाम का वक़्त था, सड़कों पर रफ्तार का शोर था। आयशा अपनी स्कूटी पर घर लौट रही थी। अचानक, एक तेज़ रफ्तार कार ने उसे टक्कर मार दी। सब कुछ एक लम्हे में बदल गया,सड़क पर बिखरी किताबें, टूटी हुई स्कूटी, और आयशा का लहूलुहान जिस्म।
अस्पताल के बेड पर पड़ी आयशा की आँखों में दर्द और खौफ दोनों था। उसके हाथ में ड्रिप लगी थी, चेहरे पर चोटों के निशान, और आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
कमरे में सन्नाटा था।
दरवाज़े पर दो साए खड़े थे,मिस सहर और रेहान साहब।
मिस सहर की आँखों में भी आँसू थे, वो आयशा के सिरहाने बैठ गईं, उसके बालों को सहलाने लगीं।
“आयशा, मेरी बच्ची… कुछ नहीं होगा तुम्हें,” उनकी आवाज़ में ममता और दर्द दोनों था।
रेहान साहब एक कोने में खड़े थे, उनके चेहरे पर अफसोस और बेचैनी साफ़ झलक रही थी।
उन्होंने आयशा का हाथ थाम लिया,
“आयशा, तुम बहुत बहादुर हो। तुम्हें कुछ नहीं होगा,”
मगर उनकी आवाज़ भीग चुकी थी।
आयशा की आँखों से आँसू बहते रहे।
उसकी निगाहें कभी मिस सहर पर टिकतीं, कभी रेहान साहब पर।
उसकी तड़प में अब इश्क़ की मासूमियत के साथ-साथ ज़िंदगी की क़द्र भी शामिल हो गई थी।
मिस सहर ने पहली बार महसूस किया कि इश्क़ से बढ़कर इंसानियत है।
उन्होंने आयशा के माथे को चूमा,
“तुम्हारी सलामती के लिए मैं हर दुआ करूंगी।”
रेहान साहब की आँखों में पशेमानी थी,
“काश मैं तुम्हें बचा सकता, आयशा।”
अस्पताल के कमरे में चुप्पी थी,
मगर तीनों दिलों में एक नई तासीर जाग चुकी थी,
इश्क़, दर्द, और उम्मीद की मिली-जुली रौशनी।
अस्पताल के उस सफेद कमरे में, रात गहराती जा रही थी। मशीनों की आवाज़ें, दवाओं की कड़वी महक, और मौत की आहट—सब कुछ एक अजीब सी ख़ामोशी में डूबा था। आयशा की साँसें अब टूटती हुई लग रही थीं। उसकी आँखों में गहरी थकान, मगर होठों पर हल्की सी मुस्कान थी—जैसे वो ज़िंदगी से रुख़्सत होने से पहले कोई अमानत छोड़ना चाहती हो।मिस सहर और रेहान साहब दोनों उसके पास थे।
आयशा ने कांपते हुए हाथ से रेहान साहब का हाथ थामा, फिर बड़ी मुश्किल से मिस सहर का हाथ भी अपने हाथ में ले लिया।
उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी, मगर उसमें एक अजीब सी तसल्ली थी—
“सर… मिस सहर… मेरा और आपका साथ शायद यहीं तक था।
मगर मैं जा रही हूँ, इस यकीन के साथ कि आप दोनों एक-दूसरे का सहारा बनेंगे।
मुझे देखना हो, तो बस आप दोनों की मुस्कान में देख लीजिएगा…
मैं हमेशा वहीं रहूंगी…”
उसकी आँखों से दो मोती गिर पड़े।
मिस सहर की रुलाई फूट पड़ी,
रेहान साहब की आँखें नम थीं।
आयशा ने दोनों के हाथ एक-दूसरे में थमा दिए,
उसकी मुस्कान में अब दर्द नहीं, सुकून था।
अचानक, मशीन की आवाज़ बदल गई।
आयशा की साँसें थम गईं।
कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया।
बारिश की बूंदें खिड़की से टकरा रही थीं,
अस्पताल के कमरे में एक मासूम रूह ने
इश्क़ की सरहद पार कर ली थी।मिस सहर और रेहान साहब—दोनों ने आयशा के हाथों की गर्मी को महसूस किया,
उसकी आखिरी ख्वाहिश को अपने दिल में हमेशा के लिए बसा लिया।
इश्क़ की ये दास्तान यहीं खत्म नहीं होती—
आयशा की याद, उसकी मोहब्बत, और उसकी दी हुई अमानत
हमेशा मिस सहर और रेहान साहब के दिलों में जिंदा रहेगी।
कभी-कभी, मोहब्बत की सबसे बड़ी खूबसूरती
उसकी अधूरी रह जाने में ही होती है।
आयशा के जाने के बाद ज़िंदगी जैसे थम-सी गई थी। मिस सहर और रेहान साहब, दोनों के दिलों में एक खालीपन था—एक ऐसा दर्द, जिसे सिर्फ़ वक़्त ही भर सकता था। मगर आयशा की आख़िरी ख्वाहिश, उसकी दी हुई अमानत, दोनों के दिलों में एक उम्मीद की लौ बनकर जल रही थी।कुछ महीने बाद, जब मौसम ने करवट बदली, तो दोनों ने मिलकर एक नया सफ़र शुरू करने का फैसला किया। एक सादा-सी मगर दिल से की गई शादी, जिसमें आयशा की यादें हर कोने में बसी थीं। मिस सहर ने अपनी डायरी में लिखा, “इश्क़ की तासीर सिर्फ़ दर्द नहीं, कभी-कभी ये नई ज़िंदगी की वजह भी बन जाता है।”
वक़्त गुज़रता गया। एक दिन, उस घर में एक मासूम सी किलकारी गूंजी। एक नन्ही सी बच्ची ने जन्म लिया—जिसकी आँखों में वही मासूमियत, वही ख्वाब, और वही चमक थी, जो कभी आयशा की आँखों में थी। दोनों ने उसका नाम रखा—”आएशा”। आएशा अब उनके साथ थी—उनकी बाहों में भी, और उनकी यादों में भी। उसकी मुस्कान में उन्हें आयशा की मासूमियत दिखती, उसकी बातों में वही पुरानी शरारतें सुनाई देतीं। हर साल, बरसात की पहली फुहार में, रेहान साहब और मिस सहर अपनी बेटी के साथ स्कूल की पुरानी दीवारों के पास जाते, जहाँ कभी इश्क़ की मासूम लम्हों की सरहदें खिंची थीं।
मिस सहर की डायरी के आख़िरी पन्ने पर लिखा था, “कभी-कभी मोहब्बत अधूरी रहकर भी मुकम्मल हो जाती है। क्योंकि उसकी यादें, उसकी दी हुई अमानत, हमेशा हमारे साथ रहती हैं। आएशा अब हमारे साथ भी है, और हमारी यादों में भी।” बरसात की बूंदों में, स्कूल की दीवारों की दरारों में, और आएशा की हँसी में, इश्क़ की वो मासूम सरहदें अब हमेशा के लिए अमर हो गई थीं।
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह