कहानी

वादी-ए-मोहब्बत

कश्मीर की हसीन वादियों में एक छोटा सा गाँव था, जहाँ हर तरफ हरियाली और फिजाओं में भीनी-भीनी खुशबू बसी थी। इन्हीं वादियों में एक स्कूल था, और उसी स्कूल में एक युवा शिक्षक, रितेश, अपनी पहली नियुक्ति पर आया था। उसकी आँखों में सपने थे और दिल में कोई अनजानी सी कसक। गाँव की सीधी-सादी लड़की, सोनिया, उसकी छात्रा थी। सोनिया की मासूमियत और उसकी आँखों में छुपी शरारतें रितेश के दिल पर गहरी छाप छोड़ चुकी थीं। मगर दोनों के बीच एक अनकहा फासला था,गुरु और शिष्या का रिश्ता।
समय बीतता रहा, मौसम बदलते रहे, लेकिन दोनों के दिलों में मोहब्बत की कोंपलें चुपचाप फूटती रहीं। सोनिया अक्सर पहाड़ी रास्तों पर चलते हुए रितेश की बातों को याद करती, और रितेश अपनी डायरी में सोनिया की मुस्कान और उसकी सादगी के बारे में लिखता रहता। मगर ये जज़्बात कभी जुबां तक न आ सके।
फिर एक दिन गाँव में खबर आई कि रितेश का तबादला शहर हो गया है। उधर सोनिया के घरवाले उसकी शादी की तैयारियाँ करने लगे। जुदाई का मौसम आ गया था। रितेश ने अपनी डायरी में अपने दिल की सारी बातें लिख डालीं—सोनिया की खूबसूरती, उसकी मासूमियत, और अपनी बेबसी।
अगले दिन स्कूल में एक छात्र को वह डायरी मिल गई। उसने वह डायरी सोनिया को दे दी। सोनिया ने जब वो अल्फाज़ पढ़े, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसे समझ नहीं आ।यह हकीकत है या कोई सपना। बाहर शोर था, रितेश की गाड़ी शहर जाने को तैयार थी।
सोनिया ने सब कुछ छोड़कर, आँसू भरी आँखों और काँपती आवाज़ के साथ, दौड़ते हुए रितेश की गाड़ी के सामने खुद को खड़ा कर लिया। उसने कहा।
“सर… नहीं, रितेश! आपने जो डायरी में लिखा, वही सब मेरे दिल में भी लिखा है। मैं भी आपसे मोहब्बत करती हूँ। आपके बिना ये वादी, ये पहाड़, सब सूने लगेंगे।”
रितेश की आँखों में भी हैरानी और खुशी के आँसू थे। गाड़ी रुक गई, पूरा गाँव इस पल का गवाह बन गया। कश्मीर की वादियों में उस दिन मोहब्बत की खुशबू कुछ और ही थी।
इस तरह एक खामोश मोहब्बत, अल्फाज़ की जंजीर तोड़कर, पहाड़ों की गूंज बन गई। और कश्मीर की वादियों में आज भी इस मोहब्बत की कहानी सुनाई जाती है—”वादी-ए-मोहब्बत”।
अब सोनिया और रितेश शादी के बंधन में बंध चुके थे। रितेश ने अपना तबादला रद्द करवा लिया था, ताकि वो अपनी मोहब्बत की वादियों को छोड़ न सके, और सोनिया के साथ हर लम्हा जी सके। उनकी मोहब्बत अब वादियों में गूंजने लगी थी, हर सुबह की हवा में, हर शाम की रौशनी में उनकी हँसी की आवाजें गूंजती थीं। पहाड़ों की खामोशी में अब खुशियों की सरगोशियाँ थीं, और कश्मीर की वादियों में
उनके इश्क़ की कहानी एक खूबसूरत अफ़साना बन चुकी थी।
अब वे दोनों, हर शाम साथ-साथ पहाड़ी रास्तों पर चलते, एक-दूसरे की आँखों में सपने देखते, और चाँदनी रातों में अपने प्यार की कसमें खाते। उनकी मोहब्बत अब सिर्फ दिलों तक सीमित न रही, बल्कि पूरी वादी में एक अमर खुशबू की तरह फैल गई थी। गाँव की फिजा में सेब के पेड़ों पर नन्हें फल झूल रहे थे, हवा में खुशबू थी, और दिलों में सच्चा सुकून— क्योंकि असली राहत अपनी चाहत और अपनों के बीच ही मिलती है।

— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह सहज

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।