कविता

वो बचपन की बारिश

हवाओं के संग संग गीत गुनगुनाना,
टर – टर कर बेझिझक शोर मचाना,
बारिश में छप-छप कर दौड़ लगाना,
दोस्तों संग कागज की कश्ती बनाना ।

स्कूल नहीं जाने का बहाना बनाना,
बारिश में भीगना तो मॉं को मनाना,
कोयल की कुहु कुहु मन में बसाना,
तितलियों को हाथ में पकड़ दूर उड़ाना ।

गड्ढे में थोड़ा जोर से उछल-कूद जाना,
टिप-टिप बूंदों को हथेलियों में सजाना,
हाथ पकड़ दोस्तों का रेलगाड़ी बनाना,
इंजन बन डिब्बों संग सीटी तेज बजाना ।

पंछियों के पीछे-पीछे लम्बी दौड़ लगाना,
मिट्टी सने कपड़ों में चुपचाप घर जाना,
बाबा के पीछे छुप धीरे से भाग जाना,
उटपटांग हरकतों से सबको हॅंसाना ।

गुजरा वो सुनहरा बचपन का ज़माना,
अपनी मौज थी अलग ही था फ़साना,
बेशकीमती “आनंद” जीवन का खजाना,
लौट कर फिर से आने वाला कभी ना ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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