लघुकथा – खामोशी की डगर!
“वह धूप का टुकड़ा था या नारी की बेचारी अस्मत का साक्षी!” न धूप का टुकड़ा समझ पा रहा था न नारी का मन और न ही कवि की कलम!
धीरे धीरे धूप का टुकड़ा अंधेरे में डूबता गया, बेचारी अस्मत चीखने को विवश और कवि की कलम ने ले ली खामोशी की डगर!