लघुकथा

लघुकथा – खामोशी की डगर!

“वह धूप का टुकड़ा था या नारी की बेचारी अस्मत का साक्षी!” न धूप का टुकड़ा समझ पा रहा था न नारी का मन और न ही कवि की कलम!
धीरे धीरे धूप का टुकड़ा अंधेरे में डूबता गया, बेचारी अस्मत चीखने को विवश और कवि की कलम ने ले ली खामोशी की डगर!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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