गीत/नवगीत

स्वागत गान

तार झंकृत हो रहे हैं ।
हम अलंकृत हो रहे हैं ।।

आपके बस आगमन से।
खिल उठे तन-मन सुमन से।।

मस्त मालामाल कलियाँ।
हो उठीं वाचाल गलियाँ।।

पायलें पग की छननछन।
कर रही चूड़ी खनन खन।।

गीत नगरी गा रही है ।
रस – कलश छलका रही है।।

शब्द निस्सृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं।।1।।

दिव्यता लौकिक हुई है।
भव्यता भौतिक हुई है।।

उत्सवी वातावरण है।
सभ्यता का शुभचरण है।।

फूल – मालाएँ जहाँ हैं।
बाल – बालाएँ वहाँ हैं।।

हृदय है निमिषेक आगत।
कर रहे अभिषेक स्वागत।।

आप आदृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं।।2।।

हर खुशी करके निछावर।
पन्थ पर पलकें बिछाकर।।

हम सभी कर जोड़ नतमुख।
उर मुकुलता भर नयनसुख।।

मान देने को अड़े हैं ।
नेह लेने को खड़े हैं ।।

मिल रहे सौभाग्य के फल।
गर्व की अनुभूति के पल।।

परम उपकृत हो रहे हैं।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं।।3।।

यह समर्पित सजग टोली।
माँड कर रंगीन रोली।।

शीश पर लटकी ध्वजाएँ।
आप पर अटकी निगाहें।।

कह ‌ रहीं तनकर कनातें।
मखमली चादर बिछातें।।

द्वार वन्दनवार शोभित।
मान की मनुहार शोभित।।

सब सुसंस्कृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं ।।
हम अलंकृत हो रहे हैं ।।4।।

कर रहे कब से प्रतीक्षा ।
“प्राण” प्रण की थी परीक्षा।।

मान कर विनती निवेदन।
कर दिया पावन निकेतन।।

आप ज्ञानी हैं गुणी हैं।
प्रेम पाकर हम ऋणी हैं।।

आज अभिनन्दन तुम्हारा।
लीजिए वन्दन हमारा।।

हम‌ सुधाधृत हो रहे हैं।।
तार झंकृत हो रहे हैं।।
हम अलंकृत हो रहे हैं ।।5।।

— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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