लघुकथा

निर्बल को न सताइए

निर्बल को न सताइए,जाकी मोटी हाय,

बिना जीव की श्वास से,लौह भस्म हो जाए।

संत कबीर दास के इस दोहे में कितनी सच्चाई है ,यह समझने वाला ही समझ सकता है। खेद की बात है कि बहुत से लोग इन सब बातों से अनजान रहते हैं। कुछ लोग ऐसे पद पर बैठे होते हैं कि वह किसी भी का बुरा भला कर सकते हैं। ऊंचे पद पर बैठे हुए कई अधिकारी अपने नीचे काम करने वालों के साथ पूरी ईमानदारी बरतते हैं और उनके काम की प्रशंसा करते हैं और उन्हें उचित नाम भी देते हैं ,और काम न करने वालों को नियमों के हिसाब से दंड देते हैं, इसमें कुछ बात भी गलत नहीं है, लेकिन ऐसे भी अधिकारी देखने में आते हैं जो अपने आपसी रंजिश,पसंद नापसंद या अपने आप को सिर्फ ऊंचा दिखाने की जिद  में किसी अधीनस्थ बेकसूर को कुछ भी कह देते हैं या हद से ज्यादा तंग कर देते हैं। वह यह भूल जाते हैं कि वह सदा इस पद पर नहीं रहेंगे और जब वह इस पद पर नहीं रहेंगे तब उनके साथ भी इसका हिसाब किताब हो सकता है, क्योंकि अपने हर कर्म का हर व्यक्ति को फल भुगतना ही पड़ता है। निजी जीवन में भी मेरा ऐसा अनुभव है।

एक किस्सा याद आ रहा है ,जब एक सेठ ने पुलिस में शिकायत की, उसके यहां चोरी हो गई है। चोरी ₹50000 की थी। सेठ जी ने नौकर पर शक किया और पुलिस उसे पकड़ कर थाने में ले गई।नौकर ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और अपनी पत्नी के गहने और घर का सामान बेचकर सेठ जी के पैसे वापस कर दिए और मामला रफा दफा हो गया। नौकर अपने गांव लौट आया और मजदूरी कर  अपना गुजारा करने लगा।

कुछ दिन बाद सेठ जी को  ₹50000 घर में ही मिल गए ,वह कहीं रखकर भूल गए थे और इल्जाम चोरी का नौकर पर लगा दिया था। सेठ जी किसी तरह पूछताछ करके नौकर के गांव पहुंचे और उसे ₹50000 वापस करते हुए कहा कि यह पैसे मेरे मिल गए हैं, पर जब तुमने चोरी नहीं की थी तो चोरी का इल्जाम क्यों ले लिया अपने ऊपर।

नौकर ने हाथ जोड़कर सेठ जी से कहा मैं पुलिस की मार और बदनामी से बचना चाहता था इसलिए मैंने ऐसा किया, क्योंकि वहां मेरी कोई नहीं सुन रहा था और सब मुझे मारने पर उतारू थे ,मुझ जैसे एक ईमानदार निर्बल को सताया जा रहा था। 

अब सेठ जी अपने किए पर पछता रहे थे उन्होंने हाथ जोड़कर उसे नौकर से माफी मांगी और उसे वापस अपने घर ले आए और काम पर रख लिया।

हमें सदा सच्चाई का साथ देना चाहिए और वह लोग विशेष कर जिनके हाथ में कोई ताकत है उन्हें तो यह बहुत जरूरी है कि पहले हर मामले की अच्छी तरह तहकीकात करें और उसके बाद ही कोई   न्यायसंगत काम करें। समय बहुत बलवान है इंसान या भगवान तो एक बार माफ कर दे लेकिन समय कभी किसी को माफ नहीं करता और उसे उसके कर्म के अनुसार ही फल देता है।

— जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845