कविता

वक़्त के साथ

वक़्त के साथ हर याद छोड़ गया हर निशान,
धुंधली सी रह गई बस वो पुरानी पहचान।
वो जमाना जब करते थे मस्तियाँ बेहिसाब,
अब सब खत्म हुआ, खो गया वो ख्वाब।
कहाँ चली गईं वो सुनहरी यादें,
क्यों रह गईं बस खामोश फ़साने।
अब तो बस याद है—
काम, काम और काम,
क्यों हो गए इतने बड़े?
आ गईं ज़िम्मेदारियाँ तमाम।
संघर्षों के साथ पूरी करने लगे ख्वाहिशें,
और बढ़ने लगे ऊँचाई की राहों में।
इसी जद्दोजहद में बीते हसीं पल,
और वक़्त उड़ गया—
पता ही न चला कहाँ निकल।
रह गईं पीछे बस यादें धुंधली,
दिल में बसी कुछ बातें अधूरी।

— गरिमा लखनवी

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384