ख़ुशी,मेहनत और आत्मसंतोष में छिपी होती हैं।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने आसपास के लोगों को देखकर स्वयं का मूल्यांकन करता है। लेकिन अक्सर यह मूल्यांकन और तुलना,ईर्ष्या का रूप ले लेता है। कोई मित्र यदि पढ़ाई में आगे निकल जाए, तो मन में हीनभावना आ जाती है। कोई पड़ोसी अधिक सुख-सुविधाओं में दिखे, तो भीतर असंतोष पनपने लगता है। यही तुलना धीरे-धीरे हमारी खुशी छीन लेती है।वास्तविकता यह है कि हर व्यक्ति अपने आप में अद्वितीय है। किसी की सफलता का अर्थ यह नहीं है कि हम असफल हैं। प्रत्येक व्यक्ति की यात्रा, परिस्थितियाँ और क्षमताएँ अलग होती हैं। जैसे बगीचे में गुलाब, गेंदा और कमल अपने-अपने रंग और खुशबू से बग़ीचे की शोभा बढ़ाते हैं, वैसे ही समाज में हर व्यक्ति अपनी अलग पहचान और महत्व रखता है।तुलना का परिणाम केवल मानसिक तनाव और ईर्ष्या होता है। दूसरी ओर ईर्ष्या मनुष्य की रचनात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है। जबकि सच्चा सुख और आत्मसंतोष तब मिलता है जब हम अपनी मेहनत और प्रगति पर ध्यान लगाते हैं। दूसरों को देखकर निराश होना व्यर्थ है,बेहतर है उनसे प्रेरणा लेकर अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाया जाए।जीवन की सफलता का मूलमंत्र केवल यही है,निरंतर परिश्रम और सकारात्मक सोच। परिश्रम करने वाला व्यक्ति देर-सबेर अवश्य सफलता का स्वाद चखता है। उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन खुशहाल हो जाता है। किसान की तरह जो धैर्य और लगन से बीज बोता है, वही समय आने पर सुनहरी फसल काट पाता है।अतः हमें अपने जीवन से तुलना और ईर्ष्या को दूर करना चाहिए। अपनी क्षमता पर विश्वास करना चाहिए और पूरी निष्ठा से कार्य करते रहना चाहिए। खुशियाँ कभी दूसरों से आगे निकलने में ही नहीं, बल्कि अपनी मेहनत और आत्मसंतोष में छिपी होती हैं।याद रखें , तुलना दुःख देती है, परिश्रम सुख देता है।
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह सहज
