महाराणा प्रताप का दशहरा युद्ध
हमारे देश के अंदर एक परंपरा है कि विजय दशमी के दिन हथियार जरूर बाहर निकलना चाहिए । मेवाड़ और आसपास के इलाकों में तो यहां तक कहा जाता था कि विजय दशमी के दिन तलवार पर खून जरूर लगना चाहिए । इसे टीका दौड़ भी कहते थे ।
1582 की इसी विजय दशमी को राणा प्रताप ने अकबर पर निर्णायक विजय प्राप्त की थी जिसके दिवेर का युद्ध कहा जाता है । हल्दीघाटी के 6 साल बाद लड़ा गया ये युद्ध, अकबर के 6 असफल अभियानों के बाद फाइनल डिफीट थी । हल्दीघाटी का युद्ध तो टाई हो गया था यानी ना जीत ना हार लेकिन वामपंथियों ने इसे अकबर की बहुत भारी विजय के रूप में चित्रित किया, परंतु दिवेर की जंग जहां एक एक मुगल सैनिक सेनापति समेत काट दिया गया था उस युद्ध को इतिहास की किताबों से ही हटा दिया गया क्योंकि हिंदू शासकों की विजय गाथा, वामपंथी दरबारी इतिहाकारों को रास नहीं आई ।
दशहरा के दिन अचानक ही राणा प्रताप ने इस युद्ध को शुरू किया था और राजसमंद के पास दिवेर नाम की जगह पर धावा बोल दिया जहां पर मुगल सेनापति सुल्तान खान डेरा जमाए हुए था । सुल्तान खान बहुत भारी डील डौल का हाथी जैसा सेनापति था जिसकी मौजूदगी को ही अकबर युद्ध में जीत की गारंटी मानता था ।
इस युद्ध की एक घटना बहुत दिलचस्प है । सुल्तान खान को राणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने भाला मारा था । भाला सुल्तान खान के आर पार हो गया था । सुल्तान खान गिर गया लेकिन मरा नहीं । रात को जब राणा प्रताप युद्धभूमि में अपने बेटे के साथ टहल रहे थे तो सुल्तान खान कराहता हुआ नजर आया ।
राणा प्रताप समझ गए कि ये सुल्तान खान मुगल सेनापति है । उन्होंने आखिरी वक्त में प्यासे सुल्तान खान के मुंह में गंगाजल डलवाया । फिर सुल्तान खान ने राणा प्रताप से पूछा कि मैं मरने से पहले एक बात जानना चाहता हूं कि आखिर मुझे भाला मारा किसने था । राणा प्रताप ने उसे गंभीरता से नहीं लिया और अपने पास ही मौजूद किसी मामूली सरदार को आगे कर दिया कि यही है वो जिसने भाला मारा था, सुल्तान खान ने कहा नहीं ये नहीं है… उसकी आंखों में और तेवरों में कुछ बात थी जिसनेे मुझे भाला मारा था । फिर राणा प्रताप ने अमर सिंह को आगे किया, सुल्तान खान ने पहचान लिया ।
आखिर सुल्तान खान ने राणा प्रताप से गुजारिश की कि उसकी जान नहीं जा रही है भाला सीने में अटका हुआ है । ये भाला कोई बाहर निकाल दे तो मैं मर जाऊं और दर्द खत्म हो । कोई भाला निकाल नहीं सका फिर अमर सिंह ने ही सुल्तान खान की छाती से भाला निकाला, भाला निकलते ही हाथी जैसे डीलडौल का सुल्तान खान चल बसा ।
विजय दशमी को हुए दिवेर के इस युद्ध के बाद फिर मुगलों ने चित्तौड़ को जीतने का ख्बाव हमेशा के लिए छोड़ ही दिया था । लेकिन इस दिवेर के युद्ध को हमारे इतिहासकारों ने स्कूल की किताबों में जगह क्यों नहीं दी । ये हम सबको विचार करने की जरूरत है । अभी भी स्कूल की किताबें अपने असली नायकों की प्रतीक्षा कर रही हैं ।
— दिलीप पाण्डेय
