गीतिका/ग़ज़ल

लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ कोई गीत

तमाम उम्र यही सिलसिला होता रहा
मैंने जो माँगा हर उस चीज़ को खोता रहा

मेरे अरमान थे कुछ ख़्वाब थोड़ी ख़्वाहिशें
एक-एक कर उन्हीं का जनाज़ा ढोता रहा

नई सुबह में नये से मैं इरादे लेकर
ख़्वाब रोज़ाना नये आँखों में बोता रहा

चंद यादें जो मुझे दिल-अज़ीज थीं यारों
किसी गौहर ओ नगीने सा संजोता रहा

उस हसीं की रुबाइयों सी निगाहों पे सनम
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ कोई “गीत” पिरोता रहा

— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी