मीरा बाई, प्रेम और भक्ति की अमर ज्योति,
भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में संतों और भक्त कवियों की परंपरा अद्वितीय स्थान रखती है, इनमें मीरा बाई का नाम प्रेम, भक्ति और साहस का अनूठा प्रतीक है, उनकी जयंती पर स्मरण करना केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक व्यक्तित्व को याद करना नहीं बल्कि उस आत्मिक शक्ति को नमन करना है जिसने भक्ति को मुक्ति का मार्ग बना दिया, पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मेवाड़ के कुर्मिद गाँव में जन्मी मीरा बाई बचपन से ही श्रीकृष्ण के अनुपम प्रेम में डूबी रहीं, राजघराने की बहू होकर भी उन्होंने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर स्वयं को “साँवरे की दासी” घोषित किया, उनकी भक्ति कोई परंपरागत नियमों का पालन मात्र नहीं थी बल्कि आत्मा की गहन पुकार थी जिसमें विरह की वेदना, मिलन की उत्कंठा और पूर्ण समर्पण का भाव एक साथ प्रवाहित होता था, उनके गीत और भजन सरल भाषा में प्रेम के उत्कर्ष का सजीव प्रमाण हैं, उन्होंने स्त्रियों के लिए समाज में अपनी स्वतंत्र आवाज स्थापित की और यह संदेश दिया कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग प्रेम है न कि भय, मीरा बाई की देन साहित्यिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर अमूल्य है, उन्होंने भक्तिकाल को सौंदर्यपूर्ण रचनाओं से समृद्ध किया, स्त्री की स्वतंत्रता को स्वर दिया और भक्ति को प्रेम का पर्याय बना दिया, आज जब समाज विभाजन और स्वार्थ में उलझा है तब मीरा का संदेश हमें याद दिलाता है कि प्रेम सबसे बड़ा धर्म है, वह भक्ति जो पंथ, जाति और लिंग से परे है, मीरा बाई का नाम लेना अपने भीतर उस अमर लौ को प्रज्ज्वलित करना है जो हर हृदय में ईश्वर की अनुभूति करा सके, उनकी जयंती पर उन्हें याद करना वर्तमान के लिए मार्गदर्शन है, उन्होंने सिखाया कि ईश्वर भीतर है और जिसे यह अनुभव हो जाए वही सच्चा मुक्त होता है, इस दिन आइए हम उनके प्रेम, साहस और भक्ति के संदेश को अपने जीवन में उतारें और उस अमर ज्योति को अपने भीतर सदा जलाए रखें।
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह सहज
