रिश्ते और पौधे
बीज बोते हैं हम,
स्नेह की मिट्टी में जड़ें,
नम्रता खिलती।
पानी की बूँदें,
विश्वास की छाया देतीं,
जिंदगी सजती।
धूप की गर्मी में,
सहनशीलता बढ़ती,
मजबूती मिलती।
छोटे अंकुर भी,
सच्चाई से पोषित हों,
फूल बन जाते।
मिट्टी की खुशबू में,
सहनशीलता की ताकत,
संबंध फलते।
पतझड़ का मौसम,
रिश्तों की परीक्षा ले,
जड़ें गहरी हों।
हर डाल पर प्रेम,
मिट्टी में ईमानदारी,
फल मीठा बने।
पक्षियों की चहचह,
स्नेह का संगीत सुन,
मन खिल उठे।
सर्द हवा में भी,
धैर्य की हरी पत्तियाँ,
उम्मीद जगाएँ।
समय की नमी में,
सच्चाई से सिंचित रिश्ते,
फूलों जैसे खिले।
हर जड़ में विश्वास,
हर पत्ती में आदर भरा,
संबंध स्थायी।
सहेजना इन्हें हम,
प्रेम और समझ से पाले,
जीवन महके।
— डॉ. अशोक
