ग़ज़ल
नही, नाराज़ हूँ ऐसा नही है
मुझे तुमसे गिला शिकवा नही है
करे दिल खोल कर दिल बात जिसमें
बस अब वो जहन का रिश्ता नही है
समझते हैं गलत क्या ठीक है क्या
हमारी अक्ल पे पर्दा नही है
सुनो हम सब अधूरे हैं जहाँ में
सिवा उसके कोई पूरा नही है
बदलता है समय के साथ सब कुछ
कभी कुछ एक सा रहता नही है
यकींनन सांवला है रंग थोड़ा
हमारा दिल मगर काला नही है
कमी ही बस तुम्हारी है वगरना
हमारी ज़िन्दग़ी में क्या नही है
— सतीश बंसल
